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बनाया जिसके चार हाथी जु उसमें बैठे राम लक्षमण सीता जटाय सहित रमणीक बन में विचरें जिन in को किसी का भय नहीं काह की घात नहीं काह ठौर एक दिन काह ठौर पन्द्रह दिन किसी और एक
मास क्रीडा करें। यहां निवास करें अक यहां निवास करें सी है अभिलाषा जिनके नवीन शिष्य की इच्छा की न्याई इनकी इच्छा अनेक ठौर विचरती भई । महानिर्मल जे नीझरने तिनको निरखते ऊंची नीची जायगा टार समभूमि निरखते ऊंचे वृक्षों को उलंघ कर धीरे धीरे धागे गए, अपनी स्वेच्छा कर भ्रमण करते ये धीर वीर सिंह समान निर्भय दण्डकबनके मध्य जाय प्राप्त भए कैसा है वह स्थानक
कायरों को भयंकर जहां पर्वत विचित्र शिखिरके घारक जहां रमणीक नीझरने झरें जहां से नदी निकसे | जिनका मोतियों के हार समान उज्ज्वल जल जहां अनेकवृक्ष बड़ पीपल, बहेड़ा पीलू सरसी बड़े बड़े सरल । वृक्ष धवल वृक्ष कदंब तिलक जातिवृक्ष लोंदवृक्ष अशोक जम्बूवृक्ष पाटल थाम्र प्रांवला अमिली चम्पा
कण्डीरशालि वृक्ष ताडबृक्ष प्रियंगू सप्तछद, तमाल नाग बृक्ष नन्दीबृक्ष अर्जुनजातिके वृक्ष पलाशवृक्ष मलियागिरिचन्दन केसरि भोजवृक्ष हिंगोटवृक्ष काला अगर और सुफेद अगर कुन्द वृक्ष पद्माकवृक्ष कुरंज वृक्ष पारिजात वृक्ष मिजन्यां केतकी केवड़ा महुवा कदली खैर मदनबृक्ष नींबू खजूर छुहारे चारोली नारंगी विजौरा दाडिम नारयल हरडें कैथ किरमाला विदारीकंद अगथिया करंगज कटालीकूट अजमोद कौंच कंकोल मिर्च लवंग इलायची जायफल जायवित्री चव्य चित्रक सुपारी तांबूलों की बेलि रक्तचन्दन घेत श्यामलता. मीग सींगी हरिद्रा परलू सहिंजपा कुड़ावृक्ष पद्माख पिस्ता मौलश्री बील वृक्ष द्राक्षा विदाम शाल्य इत्यादि अनेकजाति के जे बृक्ष तिन कर शोभित है और स्वयमेव उपजे. नाना
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