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पद्म
॥५६१
वहपक्षी मुनियों के चरणोंके धोक्नमें प्रोयपड़ा चरणोदकके प्रभावकर क्षणमात्र में उसको शरीर रत्नों की राशिसमान नाना प्रकार के तेजकर मण्डित होय गया पाखतो स्वर्ण की प्रभाको घरते भए. दोऊ पाँव बैडूर्यमणिसमान होय गये और देह नाना प्रकारके रत्नोंकी छविको धरता भयाऔर चंच मंगा समानारक्त भई तब यहपक्षी श्रापको और रूपको देखपरम हर्षको प्राप्त भया मधुरनादकर नृत्य करने को उद्यमी भया देवोंके दुन्दुभी समानहै नाद जिसका नेत्रोंसे आनन्दके अश्रुपातडास्ता शोभता भया जैसा मोर मेहके अागम में नत्यकरे तैसा मुनिके आगे नृत्य करता भया महामुनि विधि पूर्वक पारणो कर बैडूर्यमणि समान शिलापर विराजे । पद्मराग मणि समानहें नेत्र जिसके ऐसा पक्षी पांखसंकोच मुनियों के पांओं को प्रणामकर आगे तिष्ठा तब श्रीराम फूलेकमल समान हैं नेत्र जिनक पक्षीको प्रकाश रूप देख आप परम आश्चर्यको प्राप्तभए साधुओंके चरणारविन्दको नमस्कारकर पूछते भए कैसे हैं साधुश्रा ईस मूल गुण चौरासीलाख उत्तर गुण वेही हैं श्राभूषण जिनके बारम्बार पक्षीकी ओर निरख राममुनि से कहते भए हे भगवान यह पक्षीप्रथम अवस्था विषे महा विडरूप अंगथा सो चणमात्रमें सुवर्ण और रत्नोंके समूहकी छविधरता भया यह अशुचिसर्व मांसका आहारी दुष्ट गृध्रपची अापके चरणों के निकट तिष्ठकर महाशांतभया सो कौनकारण तब सुगुप्तिनामा मुनि कहतेभए हेराजन पूर्व इस स्थलविषे दंडक नामादेशथा जहां अनेक ग्रामनगर पट्टण संवाहण मटंब घोष खेट करबट द्रोणमुखथे वाडिकरयुक्तसोप्राम कोटखाई दरवाजोंकरजो मंडितसो नगर और जहां रत्नोंकीखान सो पट्टणपर्वतके ऊपरसो संवाहन औरजिसे पांचसौ ग्रामलगे सो मटंब और गायोंके निवास गुवालोंके आवाससो घोष और जिसके आगे नदीसो खेट
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