________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
पुराण
॥४
॥
सिझना के फूल समान रंग को घरे हैं, कईएक विद्युत समान ज्योति को घरे हैं, यह विद्या धरी महा। सुगंधित शरीवाली हैं मानों नन्दन बन की पवन ही से बनाई हैं, सुन्दर फूलों के गहने पहने हैं मानों बसंत की पुत्री ही हैं, चन्द्रमा समान कांति है मानो अपनी ज्योति रूप सरोवर में तिरेही हैं, और श्याम श्वेत सुरंग तीन वर्ण के नेत्र की शोभाको धरणहारी, मृग समान है नेत्र जिनके, हंसनी समान है चाल जिनकी, वे विद्याधरी देवांगना समान शोभे हैं, और पुरुष विद्याधर महा सुन्दर शूरवीर संह समान पराक्रमी हैं महा बाहु महा पराक्रमी आकाश गमन में समर्थ भले लक्षण भली क्रिया के धरणहारे न्यायमार्गी, देवों के समान हैं प्रभा जिनकी अपनी स्त्रियों सहित विमान में बैठे अढ़ाई ईप में जहां इच्छा होय तहां ही गमन करे हैं,इस भांति दोनों श्रोणियों में वे विद्याधरदेव तुल्य इष्ट मोग भोगते महा विद्याओंको धरे हैं, कामदेव समान है रूप जिनका और चन्द्रमा समानहै बदन जिनका। धर्म के प्रसाद से प्राणी सुख संपत्ति पावें हैं इस लिये एक धर्म ही में यत्नकरो और ज्ञानरूप सूर्य से अज्ञानरूपति मर को हरो।
वे भगवान् ऋषदेव वहाध्यानी सुवर्ण समान प्रभा के धारण हारे प्रभु जगत् के हित करने निमित्त छै मास पीछे आहार लेने को चले लोक मुनिके श्राहारकी विधि जाने नहीं अनेक नगर ग्राम विषे विहार किया मानो अद्भुप्त सूर्यही विहार करे है जिन्होंने अपने देहकी कांतिसे पृथ्वी मण्डर पर प्रकाश करदिया है जिनके कांधे सुमेरु के खिर समान दैदीप्यमान हैं और परम समाधानरूप अघोष्टि देखते जीव दया पालते विहार करे हैं पुर प्रामादि में लोक अज्ञानी नाना प्रकारके वस्त्र रत्न हा थी घोडे स्थ कन्यादिक भेठ करें सो प्रभुके कुछभी प्रयोजनकी नहीं इस कारण प्रभु फिर बनको चले जावें इस भांति
For Private and Personal Use Only