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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org पन्न ॥५४२० हैं । हे सखी देखो दोनों कमल नेत्र चन्द्रमा सारिखे अद्भुत बदन जिनके और एक नारी नागकुमारी समान अद्धत देखी। नजानिये वे सरथे किमर थे हे मधे महापराय बिना उनका दर्शन नहीं अब ता वे दूर गये पीछे फिरो वे नेत्र और मनके चोर जगत् का मन हरते फिरे हैं इत्यादि नर नारियोंके पालाप सुनते सबको मोहित करते वे स्वच्छा विहारी शुद्ध हैं चित्त जिनके नाना देशों में विहार करते क्षेमांजलि नामा नगर में श्राए उसके निकट कारी घटा समान सघन वन में सुख से तिष्ठे जैसे सौमनस बन में देव तिष्ठे वहां लक्ष्मण ने महासुन्दर अम्न और अनेक व्यंजन तैय्यार किये और दाखों का स्स सो श्रीराम साता ने लक्षमण सहित भोजन किया। ___ अथानन्तर लक्षमण श्रीराम की आज्ञा लेथ क्षेमांजलि नाम पुर के देखने को चले महासुन्दर माला पहिरे और पीतांबर धारे सुन्दर है रूप जिनका नाना प्रकार की बेल वृक्ष उनसे युक्त बन और निर्मल जल की भरी नदी और नाना प्रकार के क्रीडागिरि अनेक धातु के भरे और ऊंचे ऊंचे जिन मन्दिर और मनोहर जलके निवाण और नाना प्रकारके लोक उनको देख नगर में प्रवेश किया कैसा है नगर नाना प्रकार के व्यापार कर पूर्ण सो नगर के लोक इनको देख अद्भुत रूप देख परस्पर वार्ता करते भए तिन के शब्द इसने सुने कि इस नगर के राजा के जितपद्मानामा पुत्री है उसे वह परणे जो राजा के हाथ की शक्ति की चोट को खाय जीवता बचे सो कन्या की क्या बात स्वर्ग का राज्य देय तो भी यह बात कोई न करे शक्ति की चोट से प्राण ही जांय तब कन्या कौन अर्थ जगत् में जीतव्य सर्व वस्तु से प्रिय है इसलिये कन्या के अर्थ प्राण कौन देय, यह वचन सुनकर महा कौतुकी For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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