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पद्म
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संसारकीच से पार उतारे हैं परम कल्याण के देनहारे हैं यह स्तुति पढ़ते ये दोनों चले जावें हैं इनको राजिनभक्तजान यच शांत होगये ये दोनों जिनालय में गए नमस्कारहोवो जिनमन्दिरको ऐसा कह दोनों हाथ जोड़ और चैत्यालयकी प्रदक्षिणा दई और अन्दरजाय स्तोत्र पढ़तेभए हे नाथ महा कुगतिका दाता मिथ्यामार्ग उसे तकर बहुत दिनमें तुम्हारा शरण गहा चौबीस तीर्थंकर अतीत काल के और चौबीस वर्तमान कालके और चौवीस अनागत कालके तिनको में बंदूं हूं और पंचभरत और पांच ऐरावत पंच विदेह ये पन्द्रह कर्म भूमि तिनसे जे तीर्थंकर भये और वरते हैं और अब होवेंगे तिन सबको हमारा नमस्कार हो जो संसार समुद्रसो तिरें औरतारें ऐसे श्रीमुनि सुत्रतनाथके ताई नमस्कारहो तीन लोक में जिनका यश प्रकाशक है इस भांति स्तुतिकर अष्टांग दण्डवतकर ब्राह्मण स्त्री सहित श्रीरामके अक्लो
नको गए राम मार्ग में बड़े बड़े मन्दिर महा उद्योतरूप ब्राह्मणीको दिखाए और कहताभया ये कुन्द के पुष्पसमान उज्वल सर्व कामनापूर्ण मगरीके मध्य रामके मन्दिर हैं जिनकी यह नगरी स्वर्गसमान 'शोभे है इस भांति वार्ता करता ब्राह्मण राज मन्दिर में गया सो दूरही से लक्ष्मण को देख व्याकुलता 'को प्राप्त भया चित्त में चितारे है वह श्याम सुन्दर नील कमल संमान प्रभा जिस की में अज्ञानी दुष्ट स्वमों से दुःखाया तो मुझे त्रास बीन्ही पापनी जिल्हा महा दुष्टिनी कानन को कटुक वचन भाषे अब पापा पृथ्वी के चित्र में बैठूं अब मुझे शरण कोनका जो मैं यह जानता अक यहाँही नगरी बसाए रहे हैं तो देशत्यागकर उत्तरादेशाः चला जाताइस भांति विकल्परूपहोयं ब्राह्मणीको तज ब्राह्मम मागासो लक्ष्मणने देखा सब हंसकर राम को कहा वह माय माग है और मृगंकी न्याई व्याकुल होय
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