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पराश
पद्म। रहे हैं नानाप्रकारके पक्षी केलिकरे हैं यह देश अति विस्तीर्ण मनुष्यों के संचार विना शोभे नहीं जैसे जिन iyen दीक्षाको धरे मुनि वीतरागभाव रूप परम संयम विना शोभे नहीं ऐसी सुन्दर वार्ता राम लक्षमणसे करे
हैं वहां अत्यन्त कोमल स्थानक देख रत्न कम्बल क्लिाय श्रीराम बैठे निकट धरा है धनुष जिनके और सीता प्रेमरूप जलको सरोवरी श्रीरममें आसक्त है मन जिसका सो समीप बेठी श्रीरामने लक्षमण को अाज्ञाकरी तू बट ऊपर चढ़कर देख कहीं वस्तीभी है सो अाज्ञाप्रमाण देखताभया और कहताभया किहे। देव विजियाध पर्वत समान ऊंचे जिनमन्दिर दीखे हैं तिनके शरदके वादले समान शिखर शोभहें ध्वजा फरहरे हैं और ग्रामभीबहुत दीखे हैं कूप वापी सरोवरों कर मंडित और विद्याधरोंके नगर समान दीखे हैं खेत। फल रहेहैं परन्तु मनुष्यकोई नहीं दीखे है न जानिये लोक परिवार सहित भाजगएहें अथवा क्रूरकर्म । के करनहारे म्लेच्छ बान्धकर लेगए हैं एक दलिद्री मनुष्य प्रावता दीखेहै मृगसमान शीघ आदेहै रूक्ष हैं केशजिसके और मलकर मंडितहै शरीर जिसका लावी डाढी कर पाछादित है उरस्थल और फाटे वस्त्र पहिरेढरे हैं पसेव जिसके मानो पूर्वजन्मके पापको प्रत्यक्ष दिखावेहै तब रामने अाज्ञाकरी शीघजाय उसको ले प्राव तब लक्षण बटसे उतर दलिद्री के पासगए सो लक्षमणको देख अाश्चर्यको प्राप्तभया कि यह इन्द्र है तथा वरुणहै तथा नागेन्द्रहै तथा नर है किन्नर है चन्द्रमाहै अक सूर्य है अग्नि कुमारहै अक कुवेर है यह कोई महातेज का धारक है ऐसा विचारता संता डर कर मूर्छा खाय भूमि में गिर पड़ा तब लक्ष्मण
कहते भए हे भद्र भय मतकर उठ उठ ऐसा कह उठाया और बहुत दिलासा कर श्रीरामके निकटले पाये | सो दरिद्री पुरुष क्षुधा आदि अनेक दुःखों कर पीडित था, सो राम को देख सब दुःख भूल गया |
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