SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir is * या सी कैसे मनुकि नामिनि रहीय पिता मासके पनि सुनकर बहुत प्रसन्नभया हर्ष यकी। रोमाय हाय पाएँ और कहतीभवा पुत्र तु पन्ह मनाम बुख्याविनासनका रहस्पन प्रतियोष की प्रतिमहि तूं जो कहें है स माह तथापित नारसन अवतक भी मी मेरी अशाभग न करी । न विनयधान पुरुषों में प्रधानी मेंस नाती मुंन सी माता केकीने पुखमै मेस सारथीपना किया वह बुछ अति विषमया जिसमें जीवनेकी प्रामानहीं की हो इसके सारीपनसे युद्ध में विजय पाईसबमें! सुटायमान होय इसको कही जी तेरी पाँची झीय समग तब इसमें कही यह वचन मण्डार रहे जिस दिन मुझे इच्छा होयगी उस बिन मासूमी सी भान उसने यह मांगी कि मेरे पुत्रको सख्य देवो लो। प्रमाण किया बहे गुगनिचे के सम्बसमान पर राज्य निकटककर ताकिमेरी प्रतिज्ञा मंगकी। कीर्ति जमत न हाय और यह तेरी माता तेर शोककर तप्तायमान होय मरणको न पाये कैसी है यह निरन्तर सुखकर लडायाहै शरीर जिसने अस्प कहिए पुत्र उसका यही पुत्रपनाहै कि माता पिताको शोक समुद्र में न डारे यह बात बुद्धिमान कहे हैं इस भांति राजाने मस्तको कहा ॥ अथानन्तर श्रीराम भरतका हाथ पकड़ महा मधुरवचनसे प्रेमकी भरी दृष्टिकर देखते संते कहते भए। कि हे भ्रात तातने जैसे बचन तुझे कहे ऐसे और कौन कहने समर्थ ओसमुद्रसे रत्नोंकी उत्पति होय सो सरोवरसे कहां श्रवार तेरी वय तपके योग्य नहीं कैयेक दिन राज्यकर जिससे पिताकी कीर्ति बचन पालवेको चन्द्रमासमान निर्मलहोय और तू सारिखे पुत्रके होते सते माता शोककर तप्तायमान मरण | को प्राप्त होय यह योग्य नहीं और मैं पर्वत अथवा बनमें ऐसी जगह निवास करूंगा जो कोई म For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy