________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्य
अथ श्रीरामचन्द्र बनवास नामा त्रतीय महा अधिकारः अथानन्तर राजाश्रोणक गौतमस्वामीसे पूछतेभए हे प्रभो वे राजादशरथ जगतके हितकारी राजा अरण्यके पुत्र फिर क्या करतेभए और श्रीराम लक्ष्मणका सर्व वृतांत में सुना चाहूं हूं सो कृपा करके कहो तुम्हारा यश तीनलोकमें बिस्तर रहाहै । तब मुनियों के स्वामी महातप तेजके धारनहारे गौतम गणधर कहते भए जैसा यथार्थ कथन श्री सर्वज्ञदेव बीतरागने भाषाहै तैसा हे भव्योचम तू मुन। | जब राजा दशरथ फिर मुनियोंके दर्शनोंको गए तो सर्व भूतहित स्वामीको नमस्कारकर पूछते भए | हे स्वामी मैं संसार, अनन्त जन्मधेरे सो कईभवकी बातो तुम्हारे प्रसादसे सुनकर संसारको तज चाहूंहूं तब साधु दशरथको भव सुननेका अभिलाषी जानकर कहते भए हे राजन सब संसारके जीव अनादि कालसे कर्मोंके सम्बन्धसे अनन्त जन्म मरण करते दुःखही भोगत आएहैं । इस जगत मे जीवों के कर्मों की स्थिति उत्कृष्ट मध्यम जघन्य तीन प्रकार की है और मोक्ष सर्वमें उत्तम है जिसे पंचमगति कहे हैं सो अनन्त जीवोंमें कोई एकके होयहै सबको नहीं वह पंचमगति कल्याण रूपणी है जहां से फिर आगमन नहीं वह अनन्न सुखका स्थानक शुद्ध सिद्धपद इंन्द्रिय विषय रूप रोगोंकर पीड़ित || मोहकर अन्ध प्राणी न पावें । जे तत्वार्थश्रद्धानकर रहित वैगग्यसे वहिर्मुख है और हिंसादिकमें है प्रवृति जिनकी तिनको निरन्तर चतुर्गतिका भ्रमणही है। अभव्योंको तो सर्वथा मुक्ति नहीं निरंतर भव भ्रमणही है और भव्यों में कोई एकको निवृति है जहां तक जीव पुद्गल धर्म अधर्म काल हे सो लोकाकाशहै । और जहां अकेला आकाशही है सो अलोकाकाशहे लोकके शिखर सिद्ध विराजे हैं
For Private and Personal Use Only