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पुराण
पन का घारी पुत्र होताभया मानों स्नोंकी खानमें रत्नही उपजासोजैसा श्रीराम के जन्मका उत्सव किया था।
तैसा ही उत्सव भया जिस दिन सुमित्रा के पुत्र काजन्म भया उसी ही दिन रावण के नगर में हज़ारों उत्पोत ॥३॥
होते भए, और हितुवों के नगर में शुभशकुन भए इन्दीवर कमल समान श्यामसुन्दर और कांति रूप जल को प्रवाह भले लक्षणों का धरणहारा इस लिये माता पिता ने लक्ष्मण नाम धरा । रोम लक्ष्मण दोनों ही बालक महामनोहररूप मंगा समानहें लाल होंठ जिनके और लाल कमल समानहें कर और चरण जिनके माखन से भी अतिकोमल है शरीर का पेश जिनका, और महासुगंध शरीर ये दोनों भाई बाल लीला करते कौन के चित्त को न हरें चन्दन से लिप्त है शरीर जिनका केसर का तिलक किये अति सोहें मानों विजियागिरि और अंजनगिरि ही स्वर्ण के रस से लिप्त हैं, अनेक जन्म का बढ़ा जो स्नेह उससे परेम स्नेह रूप चन्द्र सूर्य समानही हैं महलमांही जावें तब तो सर्व स्रीजनको अतिप्रिय लगें और बाहिर पावें तब सर्ब जनों को प्यारे लगें जब ये वचन बोलें तवमानों जगत् को अमृत कर सीचे हैं, और नेत्रों कर अवलोकन करेंतब सब को हर्ष से पूर्ण करें सवन के दरिद्र हरणहारे सबकेहितु सब के अन्तःकरण पोषण हार मानों ये दोनों हर्ष की और शूर वीरताकी मूर्तिही हैं, अयोध्यापुरी में सुख से रमते भए कैसे हैं दोनों कुमार अनेक सुभटकरे हैं सेवा जिनकी जैसे पहिले वलभद्रविजय और वासुदेव त्रिपृष्ठ होते भए तिन समान है चेष्टा जिनकी फिर केकई के दिव्यरूपका घरणहारा महाभाग्य पृथिवी पर प्रसिद्ध भरत नामा पुत्र भया फिर सुप्रभा के सर्व लोक में सुन्दर शत्रुवों का जीतन हारा शत्रुधन ऐसा नाम पुत्र भयो, और रामचन्द्र का नाम पद्म तथा बलदेव और लक्ष्मण का नाम हरि और वासुदेव और अर्धचक्री भी कहे हैं,
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