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पुराव ३८
ये अशान्हिका के दिन है सब लोक भगवान की पूजा और व्रत नियम में तत्पर हैं पृथिवी पर धर्म, का उद्योत होय रहा है इन दिनोंमें ये वस्तु अलभ्य है तब राजा ने कही इस वस्तु बिना मेरा मन मे नहीं इसलिये जिस उपाय से यह वस्तु मिले सो कर तब रसोईदार यह राजा की दशा देख नमर के बाहिर गया एक युवा हुवा बालक देखा उसी दिन वह मवाया सो उसे वसमें लपेट बह पापी लेनाया स्वादु बस्तुवों से उसे मिलाय पकाय राजा को भोजन दिया सो राजा महादुराचारी अभक्ष्यका बसण कर प्रसन्न भया और रसोईदार से एकान्त में पूछता मया कि हे भद्र यह मांस तू कहां से लाया भव तक ऐसा मांस मैने भक्षण न कियाथा तब रसोईदार अभयदान मांग यथावत् कहता भया तब राजा कहता भया ऐसाही मांस सदा खायाकर तब यह रसोईदार बालकों को लाडू बांटता भयो तिन लाडवों के लालच से बालक निरन्तर भावें सो बालक लाडू लेकर जावें तब जो पीछे रहजाय उसे यह रसोईदार मार राजाको भक्षण करावे निरन्तर बालक नगर में बीजने लगे तब यह बृत्तान्त लोकों ने जान रसोईदार सहित राजाको देश से निकाल दिया और इसकी राणी कनकप्रभा उसका पुत्र सिंहस्थ उसे राज्य दिया तब यह पापी सर्वत्र अनादर हुवा महादुखी पृथिवी पर भ्रमण कियाकरे जे मृतक बालक मसान विषे लोक डार पावें तिनको भषे जैसे सिंह मनुष्यों का भक्षणकरे तैसे यह भक्षणकरे इसलिये इसका नाम सिंहसौदास पृथिवी विर्षे प्रसिद्धभया फिर यह दक्षिण दिशा को गया वहां मुदिका दर्शन कर धर्म श्रवणकर श्रावकके व्रत घरताभया फिरएक महापुर नगर वहां का राजा मूवा उसके पुत्रनहीं था तब सबने यह विचार किया कि जिसे पाटबन्ध हस्तीजाय कांधे चढायलावे सो राजा होवे तब इसे कांधे
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