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॥३६॥
अथानन्तर श्रीऋषभदेवके कुल में राजा वज्रवाह भए तिन का वर्णन सुन इक्ष्वाकुवंश में श्री ऋषभदेव | पुराण निर्वाण पधारे फिर तिन के पुत्र भरत भी निर्वाण पधारे सो ऋषभदेव के समय से लेकर मुनिसुव्रतनाथ के
समय पर्यन्त बहुत काल बीता उस में असंख्य राजा भए । कैयक तो महा दुर्द्धर तप कर निर्वाण को प्राप्त भए कैयक अहमिंद्र भए, कैयक इन्द्रादिक बडी ऋद्धिके घारी देव भए कैयक पाप के उदय कर नरक में गए हे श्रेणिक इस संसार में अज्ञानी जीव चक्र की न्याई भ्रमण करे हैं, कभी स्वर्ग में भोग पावे हैं तिन में मग्न होय क्रीड़ा करें हैं कैयक पापी जीव नरक निगोद में क्लेश भोगे हैं ये प्राणी पुण्य पाप के उदय से अनादि काल के भ्रमण करे हैं कभी कष्ट उत्सव यदि विचार करके देखिये तो दुःख मेरु
समान सुख राई समान है कैयक द्रव्यरहित क्लेश भोगवे हैं कैयक वाल अवस्था में मरण करे हैं । | कैयक शोक करे हैं, कैयक रुदन कर हैं कैयक विवाद करे हैं कैयक पढे हैं कईएक पराई रक्षा कर
हैं कईएक पापी बाधा करें हैं कैयक गरजे हैं कैयक गान करे हैं कैयक पराई सेवा करे हैं कैयक भार । बहे हैं कैयक शयन करे हैं कैयक पराई निन्दा करे हैं कैयक केलि करे हैं कईएक युद्ध से शत्रुओं को || जीते हैं, कईएक शत्रु को पकड़ छोड़ देय हे कईएक कायर युद्ध को देख भागेहें कईएक शूरवीर पृथिवी का
राज्य करे हैं बिलास करे हैं फिर राज्य तज बैराग्य घारे हैं कईएक पापी हिंसा करे हैं परद्रव्यकी बांछा करे हेपर द्रव्यको हरे हैं दौड़े हैं काट कपट करे हैं वे नरक में पड़े हैं और जे कैयक लज्जा धारे हैं शील पाले हैं कर पाभाव धारे हैं पर द्रव्य तजे हैं वीतराग को भजे हे संतोष धारे हे प्राणियों को साता उपजावे हैं वे स्वर्ग पाय परंपराय मोक्ष पाबें हैं जे दान करे हैं तप करे हैं अशुभ क्रिया का त्याग करे हैं जिनेन्द्र की
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