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पंचमें कालके आदिमें मनुष्योंका सात हाथका शरीर ऊंचा होयगा और एकसौ बीस वर्षकी उत्कृष्ट | || श्रायु होयगी फिर पंचम कालके अन्त दोय हाथका शरीर और बीस वर्षकी आयु उस्कृष्ट रहेगी फिर
छठे के अन्त एक हाथका शरीर उत्कृष्ट सोला वर्षकी आयु रहेगी वे छठे काल के मनुष्य महा विरूप मांसाहारी महा दुस्खी पाप क्रियारत महा रोगी तिर्यच समान अज्ञानी होवेंगे न कोई सम्बन्ध न कोई व्यवहार न कोई ठाकुर न कोई चाकर न राजान प्रजा नधन न घर न सुख महादुखी होवेंगे अन्याय काम के सेवनहारे धर्म के प्राचार से शून्य महा पापके स्वरूप होवेंगे जैसे कृष्णपक्ष चन्द्रमा की कला घटे और शुक्लपक्ष में बढ़े तैसे अवसपणी कालमें घटे उत्सर्पणी में बढ़े और जैसे दक्षिणायण में दिन घटे और उत्तरायणमें बढे तैसे अबसर्पणी दोनों में हानि वृद्धि जाननी।
अथानन्तर हे! श्रेणिक अवतू तीर्थंकरोंके शरीरकी ऊंचाईका कथन सुन प्रथम तीर्थंकरका शरीर पांचसोधनुष ५०० दूजेका साढ़े चारसै धनुष ४५० तीजेका चारसै धनुष ४००, चौथे का साढ़ेतीनसै धनुष ३५० पांचवेंका तीनसै धनुष ३०० छठेका ढाईलो धनुष २५० सातवेंका दो सो धनुष २०० आठवेंका डेढ़सो धनुष १५० नौवे कासो धनुष १०० दसवेंका नबे धनुष ६० ग्यारवेंका अस्सी धनुष८० वाखें का सत्तर धनुष ७० तेरहवें का साठ धनुष६०चौदवेंका पच्चास धनुष५० पन्द्रवेंका पैंतालीस धनुष ४५ सोलवेंको चालीसधनुष४० सत्र का पेंतीस धनुष ३५ अठारवेंका तीस धनुष ३० उन्नीसवेंका पच्चीस धनुष २५ बीसवेंकावीसधनुष | २० इक्कीसवें का पन्द्रह धनुष १५ बाईसवें का दस धनुष १० तेइसवेंका नौ हाथ चौबीसवें का सातहाथ ७ | अब आगे इन चौवीस तीर्थंकरों की आयु का प्रमाण कहिये हैं, प्रथमका चौरासी लाखपूर्व ( चौरासी |
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