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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प पुरात ३३॥ का समूह देख स्वामीकी रचाविषे तत्पर मूंडसे बंधी है तलवार जिसके महाभयंकर पवनंजयका समापन | तजे सो विद्याधर त्रासपाय इसके समीपन पावें तब विद्याधरोंने हथनियोंके समूहसे इसे वश किया क्योंकि जेते बशीकरणके उपायहे तिनमें स्त्री समान और कोई उपाय नहीं तबये आगे श्राय पवनकुमारको देखते । भए मानो काठकाहे मोनसे बैठाहे वे यथायोग्य इसका उपचार करतेभए पर यह चिन्तामें लीन सो किसीसों न बोले जैसे ध्यानारूद मुनि किसीसे न बोलें तब पवनंजयके मातापिता आंसू डारते इस । के मस्तकको चूमते भए और छातीसे लगाक्ते भए और कहते भए कि हे पुत्र तू ऐसा विनयवान हम, को छोडकर कहां पाया महाकोमल सेजपर सोवनहारा तेरा शरीर इस भीम बनविषे कैसे रात्री व्यतीत । करी ऐसे बक्न कहे तोभी न बोले तब इसे नमीभूत और मौनव्रत धरे मरणका निश्चय जिसके ऐसा जानकर समस्त विद्याधर शोकको प्राप्त भए पिता सहित सब विलाप करते भए। ___ अयानंतर तब प्रतिसूर्य अंजनीका मामा सब विद्याधरोंसे कहताभया कि में वायुकुमारसे बचना लाप करूमा वब वह पवनंजयको छातीसे लगायकर कहता भया हे कुमार में समस्त वृतांत कहूंई सो । सुनो एक महारमणीक संध्याघ्रनामा पर्वत वहां अनंगवीचि नामा मुनिको केवलज्ञान उपजाया सो इन्द्रादिकदेव दर्शनको पाएथे और मैंभी गयाथा सो बन्दनाकर पावताथा सो मार्ममें एक पर्वत की गुफाथी उसके उपर मेरा विमान पाया सो मैंनेसीके न्दनको पनि सुनी मानों बीन बाजे है तबमें वहां मया मुफामें अंजनी देखी मैंने बनके निवासका कारण पूछा तब वसंतमालाने सर्व वृतांत कहा। अंजनी शोककरविव्हल रहनकरे सो में पीर्य बंधाया और गुफामें उसके पुत्रका जन्मभया सो गुफा पुत्र For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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