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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पराश ।।३२८॥ सबही ने प्रशंसा करी कुँवर माता पिता को प्रणाम कर सब का मुजरा लेय क्षण एक सभा विषे सबन की शुश्रुषा कर आप अंजनी के महल पपारे, प्रहस्त मित्र लार सो वह महल जैसा जीव रहित शरीर सुन्दर न लागे तैसे अंजनीविना मनोहरन लागे तब मन अप्रसन्न होय गया प्रहस्त से कहते भए हे मित्र यहां वह प्राणप्रिया कमलनयनी नहीं दीखे है सो कहां है यह मन्दिरग्स बिना मुझे उद्यान समान भासे है अथवा श्राकाश समान शून्य भासे है इसलिये तुम वार्ता पूछो वह कहां है तब प्रहस्त बाहिरले लोगों से निश्चय कर सकल वृतान्त कहता भया,तब इनके हृदयको क्षोभ उपजा माता पितासे विना पूछे । मित्रसहित महेन्द्र के नगर में गए, चित्त में उदास जब राजा महेन्द्र के नगर के समीप जाय पहुंचे तब मन में ऐसा जानाजोआजप्रिया का मिलोप होयगा तब मित्र से प्रसन्नहोय कहते भएकिहेमित्रदेखोयह नगर मनोहर दीखे है जहां वह सुन्दर कटाक्ष की घरन हारी सुन्दरी विराजेहै, जैसे कैलाश पर्वत के शिखर शोभायमान दीखे हैं तैसे ये महलके शिखर रमणीक दीखेहैं और बनवृत्त ऐसे सुन्दरहें मानों वर्षांकालकी सघनघटा ही हैं ऐसीबार्ता मित्रसे करते हुए नगरकेपास जाय पहुंचे मित्रभी बहुत प्रसन्न करता आया राजा महेंद्रने सुनी कि पवनञ्जय कुमार विजयकर पितासों मिल यहांआएहें तब नगरकी बडीशोभाकराई औरापअर्घादिकउपचारलेयसन्मुखायाबहुतश्रादरसे ऊँचर को नगर में लाएनगरकेलोगोंनेबहुतश्रादर से गुण वरणन किए कुँवरराज मन्दिर में पाए एक महूर्त ससुरके निकटबिराजे सबहीका सनमानकियाऔर यथायोग्यबार्ता करी फिर राजासे आज्ञा लेकर सासूका मुजराकरा फिरप्रियाके महल पधारे। कैसे हैं कुमार कांताके देखने की है अभिलाषा जिन के वहांभीस्त्री को न देखातब अति बिरहातुरहोय काहूकोपूछा हे बाल-|| For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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