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पद्म
॥३१६॥
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गहनवनमें शब्द रहित वृक्षोंके अग्रभागपर तिष्ठे मानों रात्रिको श्याम स्वरूप डरावनी देख भयकर चुप होय रहे शिवा कहिये स्यालिनी तिनके भयानक शब्द प्रवरते सो मानो होनहार उपसर्ग के ढोलही बाजे हैं ।
यानंतर गुफा मुख सिंहाया कैसा है सिंह बिदारे है हाथियों के जे कुम्भस्थल तिनके रुधिरकर लाल हो रहे हैं केश जिसके और कालसमान क्रूर भृकुटीको घरे और महाविषम शब्द करता जिसके शब्द कर बन गुंजा ररहाहै और प्रलयकालकी अग्निकीज्वालासमानजीभ को मुखरूप गुफा से काढ़ता कैसी है जीभम हा कुटिल है अनेक प्राणियोंकी नाशकरनहारी और जीवों के खैंचने को जिसकी अंकुशसमान तीक्षण दाढ़ रोद्र सबको भयंकर है और जिसके नेत्र अतित्रासके कारण उगता जो प्रलयकालका सूर्य उस समान तेज को धरें दिशाओंके समूहको रंग रूपकर वह सिंह पूंछकी श्रेणीका मस्तक ऊपर घरे नखकी अणी से विदारी है धरती जिसने पहाड़ के तटसमान उरस्थल और प्रबल है जांघ जिसकी मानों वह सिंह मृत्युका स्वरूप दैत्यसमान अनेक प्राणियों का क्षयकरनहारा अन्तकको भी अन्तकसमान अग्निसे भी अधिक प्रज्वलित ऐसे डरावने सिंहको देखकर बनके सब जीव डरे उसके नादकर गुफा गाज उठी सो मानों भयकर पहाड़ रोवने लगा और इसका निठुर शब्द बनके जीवों के कानों को ऐसा बुरा लगा मानों भयानक मुद्गरका घातही है जिसके चरम समान लाल नेत्र सो उसके भय से हिरण चित्राम कैसे हो रहे और मदोन्मत्त हाथियों का मद जाता रहा वही पशुगण अपने २ ताई बचाने के लिये भयकर कंपायमान वृक्षोंके आसरे होय रहे नाहरकी ध्वनि सुन अंजनीने ऐसे प्रतिज्ञा करी कि जो उपसर्ग से मेरा शरीरजाय तोमेरे अनशन ब्रत है उप सर्ग टरे भोजन लेना और सखीवसंतमाला खड्ग है हायमें जिसके कबहूं तो आकाश में जाय कबहूं भूगिपर
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