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पद्म वृक्षक समीप सिंहासन पर विराजे हैं; वह अशोक वृक्ष प्राशियों के शोकको दूर कर है, और सिंहा
सन नाना प्रकार के रत्नों के उद्योत से इन्द्र धनुषके समान अनेक रंगोंको धेरहै, इंद्र के मुकट में जो रत्न लगेहैं, उनकी कान्तिके समूहको जीते हैं, तीन लोककी ईश्वरता के चिन्ह जो तीन छत्र उनसे श्री भगवान शोभायमान हैं और देव पुष्पोंकी वर्षा करे हैं, चौंसठ चमर सिरपर दूरे हैं, दुंदुभी । बाजे बजे हैं उनकी अत्यन्त सुन्दर ध्वनि होय रही है। ____राजगृह नगरसे राजा श्रेणिक भावते भये ।अपने मन्त्री तथा परिवार और नगर निवासियों सहित । समोशरण के पास पहुंच समोशरण को देख दूरही से छत्र चमर वाहनादिक तज कर स्तुति पूर्वक । नमस्कार करते भये पीछे आयकर मनुष्योंके कोठेमें बैठे अक्रूर, वारिषेण, अभय कुमार, विजय बाहु इत्यादिक राज पुत्र भी नमस्कार कर आय बैठे जहां भगवान की दिव्य ध्वनि खिरे है, देव मनुष्य तियच सवही अपनी अपनी भाषामें समझे हैं वह ध्वनि मेघके शब्द को जीते है, देव और सूर्यकी कान्तिको जीतने वाला भामण्डल शोभे है, सिंहासन पर जो कमल है उसपर आप अलिप्त विराजे हैं । गणधर प्रश्न करे है और दिव्य ध्वान विषे सर्व का उत्तर होय है ॥
गणधर देवने प्रश्न किया कि हे प्रभो तत्वके स्वरूप का ब्याख्यान करो तब भगवान तत्वका निरूपण करते भये । तत्व दो प्रकार के हैं एक जीव दूसरा अजीव, जीवों के दो भेद हैं सिद्ध और
संसारी ॥संसारीके दो भेदहें एक भव्य दूसरा अभव्य, मुक्त होने योग्यको भव्य कहिये और कोरडू (कुडकू) || मूंग समान जो कभी भी न सीझे तिनको अभव्य कहिये, भगवान्के भाषे तत्वोंका श्रद्धान भव्य जीवोंके ।
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