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॥२४२॥
पद्म | वोंसे जोतागया सो ह इन्द्र कोई निबुद्धी कद्द बोयकर वृथा शालिकी प्रार्थना करै है ये पाणी जैसे कर्म
करें हैं वैसे फलभोगे हैं तेंने भोग का साधन शुभकर्म पूर्व कियाथा सो क्षीणभया कारण विना काय की उत्पत्ति न होय इस बातका आश्चर्य क्या तूने इसी जन्म में अशुभ कर्म किये विनसे यह अपमान रूष फल पाया और रावणतो निमित्तमात्र है तेने जा आज्ञान चेष्टाकरी सो क्यानहीं जाने है तू ऐश्वर्य मदकर भ्रष्टभया बहुत दिनभये इसलिये तुझे याद नहीं आवे है अब एकाग्रचित्त कर सुन अरिचयपुर में वहिवेग नामा विद्याधर राजा उसके राणी वेगवती पुत्री अहिल्या उसका स्वयम्बर मण्डप रचाथा वहां दोनों श्रेणी के विद्याधर अति अभिलाषी होय विभवसे शोभायमान गए और तभी बड़ी सम्पदा सहित गया और एक चन्द्रावर्तनामा नगरका धनी राजा आनन्दमाल सो भी वहां आया अहिल्याने सवको तजकर उसके कण्ठमें बरमाला डाली कैसीहै अहिल्या सुन्दरहै सर्व अङ्ग जिसका सो आनंदमाल अहिल्याको परणकर जैसे इन्द्र इन्द्राणी सहित स्वर्गलोकमें सुख भोगेतैसे मन बांछित भोगभोगताभया सो जिस दिनसे वह अहिल्या परणा उसदिन से तेरे इससे ईर्षा बढ़ी तैने उसको अपना बड़ा बैरी जाना कैएक दिन वह घरमें रहा फिर उसको ऐसी बुद्धि उपजी कि यह देह विनाशीकहै इससे मुझे कछु प्रयोजन नहीं अब में तपकरूं जिसकर संसारका दुःख दूर होय ये इन्द्रियों के भोग महाठग तिन विषे सुखकी आशा कहां ऐसा मनमें विचारकर वह ज्ञानी अन्तरात्मा सर्व परिग्रह को तजकर परम तप अोचरता भया एकदिन हंसावलीनदीके तीर कायोत्सर्गधर तिष्ठेथा सो तैने देखा ताके देखनेमात्रसेही इन्धनकरबढी है | क्रोधरूप अग्नि जिसके सो तैं मूर्खने गर्बकर हांसीकरी अहो आनन्दमालतू कामभोगमें अति आसक्त
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