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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पुराण २२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रावणके योधा बज्रवेग हस्त, प्रहस्त, मारीच, उदभव, वजू, वक्र, सुक्र, घोर, सारन, गणनोज्वल, महा अठर, मध्याअक्रूर इत्यादि विद्याघर बड़े योधा रातसवंशी नामा प्रकार के वाहनोंपर चढ़े अनेक आयुधों के धारक देवोंसे लड़ने लगे तिनके प्रभावसे क्षणमात्र में देवोंकी सेना हटी तब इन्द्र के बड़े योघा कोपकर भरेयुद्ध को सन्मुख भए तिनके नाम मेघमाली, तडसंग, ज्वलिताच, अरि, संचर, पाचकसिंदन इत्यादि बड़े २ देवोंने शस्त्रों के समूह चलावतेहुए राक्षसों को दबाया सो कछुइक राक्षसोंकी सेना हटी ज्यों समुद्र में भँवर भ्रमें त्यों राक्षशलोक अपनी सेनामें भूमते भए कछु इक शिथिल होगये तब और बड़े बड़े राक्षस इनको घीर्य बँधावते भए महा सामन्त राक्षसवंशी विद्याघर प्राण तजते भये परन्तु शस्त्र न डारते भये राजा महेन्द्रसेन बानरवन्शी राक्षसोंके बड़े मित्र उनका पुत्र प्रसन्नकीर्त्तिने बाणोंके प्रहारकर देवन की सेना हटाई राक्षसों के बलको बड़ा धीर्य बँधा तब अनेकदेव प्रसन्नकीर्तिपर खाए सो प्रसन्नकीर्त्तिने अपने बाणोंसे बिदारे जैसे खोटे तापसियों का मन मन्मथ (काम) विदारे तव और बड़े २ देव आए कपि राक्षस और देवोंके खडग कनक गदा शक्ति धनुष मुद्गर इनकर अंति युद्धभया तब माल्यवान्का बेटा श्रीमाली रावणका काका महा प्रसिद्धपुरुष अपनी सेनाकी मददके अर्थ देवोंपर आया सूर्यसमान है. कांति जिसकी सो उसके बाणोंकी वर्षा से देवोंकी सेना हटाई जैसे महाग्राह समुद्रको झकोले तैसे देवनकी सेना श्रीमाकोली तब इंद्रके योधा अपनेवलकी रक्षानिमत्त महाक्रोधकेभरे अनेक आयुधों के धारक शिखिके सरदंडाग्र कनक प्रवर इत्यादि इन्द्रके भानजे बास वर्षाकर आकाशको यात्रादते हुए श्रीमालीपर श्राए सो श्री मालीने अर्धचन्द्र बाणसे उनके शिररूप कमलोंकर पृथिवी याचादितकरी तब इन्द्रने विचारा कि यह श्रीमा For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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