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॥१३॥
नगर, चतुरको सर्व कला चतुराई सीखने का स्थान, और ठगको धूर्त का मन्दिर भासे है सन्तनको साधुओं का संगम ब्यापारी को लाभ भूमि शरणागति को बब्रपिंजर नीति के वेताको नीति का मन्दिर कौतुकी ( खिलारियों) को कौतिकका निवास, कामिनि को अप्सरों का नगर सुखीयाको आनन्दका । निवास भासे है ।जहां गज गामिनी शीलवन्ती व्रतवन्ती रूपवन्ती अनेक स्त्री हैं जिनके शरीरकी पद्म राग मणिकीसी प्रभा है और चन्द्रकांति मणि जैसा बदन है सुकुमार अङ्ग हैं पतिव्रता है व्यभिचारीको अगम्य हैं महो सौन्दर्य युक्त हैं मिष्ट वचनकी बोलनहारी हैं और सदा हर्षरूप मनोहर हैं मुख जिनके । और प्रमाद रहित हैं चेष्टा जिनकी सामायिक प्रोषध प्रतिक्रमण की करनहारी हैं बत नेमादि विषे साव. धान हे अन्न का शोधन जलका छानना यतिनको भक्ति से दान देना और दुखित भखित जीव को | दयाकर दान देना इत्यादि शुभ क्रिया में सावधान हैं जहां महा मनोहर जिन मन्दिर हैं जिनेश्वर की
और सिद्धांतकी चरचा ठौर और है । ऐसा राजगृह नगर बसे है जिसकी उपमा कथन में न भावे, स्वर्ग | लोक तो केवल भोगहीका बिलासहै और यह नगर भोग और योग दोनोही का निवासहै जहां पर्वत । समान तो ऊंचा कोट है और महागंभीर खाई है जिसमें बैरी प्रवेश नहीं करसक्त ऐसा देवलोक समान शोभायमान राजगृह नगर बसे है।
राजगृह नगर में राजा श्रेणिक राज्य करे है जो इन्द्र समान विख्यात है। बड़ा योधा कल्याण रूप है प्रकृति जिसकी कल्याण ऐसा नाम स्वर्ण का भी है और मंगल का भी है सुमेर तो सुवर्ण रूप है। | और राजा कल्याण रूप है, वह राजा समुद्रसमान गम्भीर है मर्यादा उलंघन का है भय जिसको ।
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