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पाण १८६॥
पा | पाताला लंका में खरबूषण बहलेकाहे वहां जाय डेरा कियाः पाताललंका के समीपाटेरा भया रात्रिका
समयथा खरखूपणशयन करेया सो चन्द्रमखा रावणकी बहिनने जगाला पाताललंकासे निकसकर रावण के निकर पाया रत्नोंके अर्घ देय महा भक्तिसे परम उत्साहकर रावामकी पूजा करी । राषपने भी वाजपना के स्नेहकर खरदूपण का बहुत सत्कार किया. जगतमें पहिन पाहणे समान और कोऊ स्नेहका पात्र नहीं ।। बरदूषणने चौदह हजार विद्याधर मनवांछित नाना रूपके पारनहारे सवय को दिखाए रावण खरदूषणकी सेना देख बहुत प्रसन्नभए श्राप समान सेनापति किया केसाह वरदूषमा महा शूरवीरहे उसने अपने गुणों से सर्व सामन्तोंका चित्त बश कियाहै हिंडं देहिडिंब, विकट, बिजवाय माकोट, सुजट, टंक, किहकन्धाधिपति, सुग्रीव, तथा त्रिपुर, मलय, हेमपाल, कोल, वसुन्दर इत्यादिक अनेक राजा नाना प्रकार के वाहनों पर चढ़े नाना प्रकार शस्त्र विद्या विषे प्रवीण अनेक शस्वन के अभ्यासी तिनकर युक्त पाताल लंका से खरदूषण रावमा के कटक में पाया जैसे पाताल लोक से असुर कुमारों के समूहकर युक्त चमरेन्द्र श्रावे इस भांति अनेक विद्याधर गजात्रोंके समूहकर राक्ण का कटक पूर्ण होताभया जैसे बिजली और इंद्रधनुषकर युक्त मेघमालायोंके समूह तिनकर-श्रावणमास पूर्ण होया ऐसे एक हजार ऊपर अधिक प्रक्षोहिणी दल रावणके होय चुका पौरदिन दिन बढ़ता जाय है और हजार हजार देवोंकर सेवा योग्य रत्न नानाप्रकार गुणों के समूहके धारणारे उनकर युक्त और चन्द्राकरण समान उज्ज्वल चमर जिसपर दुरे हैं उज्ज्वल छत्र सिरपर फिरे हैं जिसका रूप सुंदर हे महाबाहु महाबली पुष्पक नामाबिमानपर चढ़ा सुमेरु समान स्थिर मूर्यसमान ज्योति अपने विमानादि
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