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॥१५२०
पण वास रूप महा फांसी से छुड़ाया और कुम्भकरण मेरा परम मित्रहै जिसने यह संग्रामका कारण मेरे ज्ञान |
का निमित्त बनाया ऐसा विचार कर वैश्रवण ने दिगम्बरी दीक्षा श्रादरी परम तपको आराध कर परम घाम पधारे संसार भ्रमण से रहित भए। ____ रावण अपने कुलका अपमानरूप मैलधोकर सुख अवस्थाको प्राप्तभया समस्त भाइयोंने उसको राक्षसों का शिखर जाना बैश्रवण की असवारी का पुष्पक नामा विमान महा मनोग्य है रत्नों की ज्योति के अंकुरे छुटरहे हैं झरोखेही हैं नेत्र जिसके निर्मल कांतिके धारणहारे महा मुक्ताफलकी झालरोंसे मानों अपने स्वामीके वियोगसे अश्रुपात्रही डारे हैं और पद्मरोगमणियों की प्रभासेपारक्तताको धारे हैं मानो यह वैश्रवण का हृदयही रावण के किये घाव से लाल होरहा है और इन्द्र नील मणियोंकी प्रभा केसे अति श्याम सुन्दरता को धरै हैं मानो स्वामी के शोकसे सांउला होयरहा है चैत्यालय बन बापी सरोवर अनेक मन्दिरोंसे मण्डित मानों नगर का आकारही है रावण के हाथ के नाना प्रकारके घाव से मानों घायल होरहा है रावणके मन्दिर समान ऊंचा जो वह विमान उसको रावण के सेवक रावण के समीप लाए वह विमान आकाश का मण्डनहीं है इस विमान को बैरीके भंग का चिन्ह जान रावणने अादरा
और किसीका कुछभी न लिया रावण के किसी वस्तुकी कमी नहीं विद्यामई अनेक विमान हैं तथापि पुष्पक विमान में विशेष अनुराग से चढ़े रत्नश्रवा तथा केकसी माता और समस्त प्रधान सेनापति तथा भाई बेटों सहित आप पुष्पक विमान में प्रारूढ़ भया और पुरजन नाना प्रकारके बाहनों पर आरूढ़भए पुष्प के मध्य महा कमल बनहें तहां आप मन्दोदरी आदि समस्त राज लोकों सहित आप विराजे हैं
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