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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराया ॥१४२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नजीक क्षण में अद्दश्य क्षण में दृश्य क्षण में सूक्ष्म क्षण में स्थूल क्षण में भयानक क्षण में मनोहर इस भान्ति रमता भया ॥ एक दिवस रावण मेघवर नामा पर्वत पर गया वहां एक बापिका देखी निर्मल हैं जल जिसका अनेक जाति के कमलों से रमणीक है और क्रौंच हंस चकवा सारिस इत्यादि अनेक पक्षियों के शब्द होय रहे हैं और मनोहर हैं तट जिसके सुन्दर सिवाणों से शोभित हैं जिसके समीप अर्जुन आदि बडे बड़े बृत्तोंकी छाया होयरहीहै जहां चंचल मीनकी कलोलसे जलके बांटे उछल रहे हैं वहां रावण आया और अति सुन्दर छ हजार राज कन्या क्रीड़ा करती देखीं कैएक तो जल केलिमें छांटे उछाले हैं एक कमलों के बन में घुसीहुई कमन बदनी कमलों की शोभा को जीते हैं भ्रमर कमलों की शोभाको छोड़ इनके मुखपर गुञ्जारकरें हैं कैएक मृदंग बजावें हैं कैएक बीण बजावै हैं यह समस्त कन्या रावण को देखकर जल क्रीड़ाको तज खड़ी होय रहीं रावणभी उनके बीच जाय जल क्रीड़ा करने लगे तब वे भी जल क्रीड़ा करने लगीं वे सर्व रावण का रूप देख कामवाण कर बींधीगई सबकी दृष्टि इसको ऐसी लगी कि अन्यत्र न जाय इस कै और उनके राग भाव भया प्रथम मिलापकी लज्जा और मदन का प्रगट "होना सो तिनका मनहिंडौले में झूलता भया ऊन कन्याओं में जो मुख्य हैं उनका नाम सुनो राजा सुरसुन्दर राणी सर्वश्री की पुत्री पद्मावती नीलकमल सारिखे हैं नेत्र जिसके राजा बुध रानी मनोवेगा उसकी कन्या अशोकलता मानो साक्षात् अशोककी लताही है और राजा कनक रानी संध्या की पुत्री विद्युतप्रभा जो अपनी प्रभाकर बिजुली की प्रभाको लज्जावंत करे है सुन्दर है दर्शन जिसका बड़े कुल For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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