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पद्म
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भाई देवकुमार सारिखे गुरुवोंका अति विनय कर चरणोंकी बन्दना करते भए तब बड़ों ने बहुत श्राशीर्वादपुदी हे पुलो तुम बहुत काल जीवो और महा सम्पदा भोगो तुम्हारीसी विद्या और में नहीं गुपाली माल्य वान सूर्यरज रचरज और रत्नश्रवा इन्हों ने स्नेह से रावण कुम्भकरण विभीषण को उरसे लगाया फिर समस्त भाई और समस्त सेवक लोग भली विधि सों भोजन करतेभये रावण ने बड़ों की बहुत सेवा करी और सेवक लोगों का बहत सन्मान किया सबको वस्त्राभूषण दीए सुमाली यादि सर्बही गुरुजन फूल गए हैं नेत्र जिनके रावण से अति प्रसन्न होय पूछते भये हे पुत्रो ! तुम बहुत सुखसे हो तब नमस्कार कर यह कहते भये हे प्रभो हम आपके प्रसादसे सदा कुशल रूप हैं फिर बाबा माली की बात चली सो सुमाली शोक के भार से मूर्छा खाय गिरा तब रावण ने शीतोपचार से सचेत किये और समस्त शत्रुवों के समूहके घातरूप सामन्तताके वचन कहकर दादा को बहुत यानन्द रूप किया सुमाली कमलनेत्र Trust देखकर ति श्रानन्दरूप भए सुमाली रावणको कहते भए अहो पुत्र तेरा उदार पराक्रम जिसे देख देवता प्रसन्न होय अहो कांति तेरी सूर्यको जीतनेहारी गम्भीरता तेरी समुद्रसे अधिक पराक्रम तेरा सर्व सामन्तों को उलंघे अहो वत्स हमारे राक्षस कुलका तू तिलक प्रगट भ्रया है जैसे जम्बूदीपका भू
सुमेरु है और आकाश के आभूषण चांद सूर्य हैं तैसे हे पुत्र रावण अब हमारे कुलका तू मण्डन है। महा आश्चर्यकी करणहारी चेष्टा तेरी सकल मित्रोंको आनन्द उपजावे है जब तू प्रगटभया तब हमको क्या चिन्ता है आगे अपने वंश में राजा मेघवाहन आदि बड़े बड़े राजा भये वे लंकापुरीका राज करके पुत्रों को राजदेय मुनि होय मोक्ष गये अब हमारे पुण्य से तू भया सर्व राक्षसोंके कष्ट का हरणहारा शत्रुवर्ग
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