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से दानदेना और दयाभावसे सदा सबको देना और अन्त समय समाधिमरण करना और सम्यकज्ञानकी प्राति किसी उत्तम जीवहीको होय है कैएकोंके तो विद्या दस वर्षों में सिद्धि होयहै कैएकको एक मास में कैएकको क्षणमात्रमें यह सब कमीका प्रभाव जानोरातिदिन धरतीपर कोई भूमण करो अथवा जल में प्रवेश करो तथा पर्वतके मस्तकसे परोअनेक शरीरके कष्ट करो तथापि पुण्यके उदय बिना कार्य सिद्धि नहीं होता जे उत्तम कर्म नहीं करेहै वे वृथा शरीर खोवे हैं इसलिये सर्व आदरसे प्राचार्यों की सेवा करके पुरुषों को सदा पुण्यही करना योगहै पुण्य बिना कहांसे सिद्धि होय । पुण्य का प्रभाव देख कि थोड़े ही दिनोंमें और मन्त्र विधि पूर्ण होनेसे पहिले ही रावण को महा विद्या सिद्धि भई जेजे विद्या सिद्धि भई तिनके संक्षपता से नाम सुनो नभःसंचारिणी कामदायिनी कामगाभिनी दुर्निवारा जगतकंपा प्रगुप्ति भानुमालिनी प्राणमा लधिमा क्षोभा मनस्तंभकारिणी संवाहिनी सुरध्वंसीकौमारी वध्य कारणी मुविधाना तमोरूपा दहना विपलोदरीशुभप्रदा रजोरूपा दिनरात्रिविधायिनी बज्जोदरी समावृष्टि अदर्शिनीअजराअमरा अनवस्तीभनी तोयस्तंभिनीगिीरदारिणी अवलोकिनी ध्वंसी धीराघोरा भुजंगिनी वीरिनीएकभुवनाअवध्यादारुणा मदनासिनी भास्करी भयसंभूतिऐशानि विजियाजया बंधिनी मोचनी बाराही कुटिलाकृति चितोद्भवकरी शांति कौवेरी वशकारिणी योगेश्वरी वलोत्साही चंडा भीति प्रविषिणी इत्यादिअनेक महा विद्या रावणको थोड़े ही दिनोंमें सिद्ध भई तथा कुम्भकर्णको पांच विद्या सिद्ध भई उन के नाम सर्वहारिणी अतिसंवर्धिनीजू भिजीब्योमगामिनी निद्रानी तथा विभीषणको चार विद्या सिद्ध भई सिद्धार्था शत्रु दमनी व्याघाता आकाशगामिनी यह तीनोही भाई विद्याके ईश्वर होते भये और |
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