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पद्म
॥५॥
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बुद्ध हैं वे मुक्तिके कारण नाहीं । जटा मृगछाला वस्त्र शस्त्र स्री रुद्राक्ष कपाल माला के धारक हैं और जीवों के दहन घातन छेदन विषे प्रवृत्ते हैं। विरुद्ध अर्थ कथन करनेवाले हैं मीमांसा तो धर्मका हिंसा लक्षण बताय हिंसा विषे प्रवृत्ते हैं और सांख्य जो हैं सो आत्मा को अकर्ता और निर्गुण भोक्ता माने हैं और प्रकृतिही को कर्ता माने हैं । और नैयायिक वैशेषिक आत्माको ज्ञान रहित जड़ माने हैं और जगत कर्ता ईश्वर माने हैं। और बौद्ध क्षिण भंगुर माने हैं। शून्यवादी शून्य मानहें और वेदांतवादी एक ही आत्मा त्रैलोक्यव्यापी नरनारक देव तिर्यंच मोक्ष सुख दुःखादि अवस्था विषे माने हैं इसलिये ये सर्व ही मुक्ति के कारण नाहीं । मोक्ष का कारण एक जिन शासनही है जो सर्व जीवमात्रका मित्रहै । और सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, का प्रगट करनेवाला है ऐसे जिन शासनको श्रीवीतराग देव प्रकट कर दि. खावें हैं। वह सिद्ध अर्थात् जीवन मुक्तहैं और सर्व अर्थकर पूर्ण हैं मुक्ति के कारण हैं सर्वोत्तम हैं
और सम्यकदर्शन ज्ञान चारित्र के प्रकाश करनेवाले हैं इन्द्रों के मुकुटों कर स्पर्शे गये हैं चरणारविन्द जिनके ऐसे श्रीमहावीर वर्द्धमान सन्मत नाथ अन्तिम तीर्थकर तीनलोक के सर्व प्राणियोंको महा मङ्गल रूप हैं महा योगीश्वर हैं मोह मल्ल के जीतनेवाले हैं अनन्त बल के घारक हे संसार समुद्र विषे डूब रहे जे प्राणी तिनके उद्धार के करन हारे हैं शिव विष्णु दामोदर, त्रयम्बक, चतुर्मुख, बुद्ध ब्रह्मा, हरि शङ्कर, रुद्र, नारायण, हरभास्कर, परममूर्ति इत्यादि जिनके अनेक नाम हे तिनको शास्त्रकी आदि विषे महा मङ्गल के अर्थ सर्व विघ्न के विनाशवे निमित्त मन बचन काय कर नमस्कार करूं हूं इस अवसर्पिणी काल में प्रथमही भगवान श्रीऋषभदेव भए सर्व योगीश्वरों के नाथ सर्व विद्या के निधान
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