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पद्म
॥ १२९ ॥
हर्षरूप हाये भीमनामा महाबनमें प्रवेश किया । उस बनमें सिंहादि कूर जीव नादकर पुरा रहेहें विकराल हैं दाढ़ और बदन जिनके और सूते हुवे अजगरों के निश्वाससे कंपायमानहें बड़े वृक्ष जहां और नाचे व्यन्तरोंके समूह जहां जिनके पायनसे कंपायमान है पृथ्वी तल जहां महा गंभीर गुफा में अन्धकारका समूह फैल रहा है मनुष्यों की तो क्या बात जहां देव भी गमन न कर सके हैं जिसकी भयंकरता पृथ्वी में प्रसिद्ध है जहां पर्वत दुर्गम महाश्रन्धकारको घरे गुफा और कंटकरूप वृत्त हैं मनुष्यों का संचार नहीं वहां ये तीनों भाई उज्ज्वल धोती दुपट्टा वारे शांति भावको ग्रहण कर सर्व आशा निकर विद्या अर्थ तप करणेको उद्यमी भए निशंक है चित्त जिनका पूर्ण चन्द्रमा समान है बदन जिनका विद्याधरों के शिरोमणि जुदे २ बनमें विराजे डेढ़ दिनमें अष्टाक्षर मंत्र के लव जाप किये सो सर्व काम प्रदा विद्या तीनों भाइयोंको सिद्ध भई मन बांछित अन्न इनको विद्या पहुंचावे
धाकी बाधा इनको न होती भई फिर यह स्थिर चितहोय सहस्त्रकोटि षोड़शातरमंत्र जपते भए उस समय जम्बूदीपक अधिपति श्रनात्रति नामा यक्ष स्त्रियों सहित क्रीडा करता आया उसकी देवांगना इन तीनों भाइयों को महारूपवान और नवयौवन तपमें सावधान देख कौतुक कर इनके समीप भाई कमल समान हैं मुख जिनके भूमा समान हैं श्याम सुन्दर केश जिनके कैएक आपसमें बोली हो यह राजकुमार प्रति कोमल शरीर कांतिधारी वस्त्राभरण सहित कौन अर्थ तप करेहैं इनके शरीरकी कांति भोगों बिना न सोहे कहां इनकी नवयोधन वय और कहां यह भयानक बनमें तप करना। फिर इनके तप केडगाव के अर्थ कहती मई हो अल्पबुद्धि तुम्हारा सुंदर रूपवान शरीर भोगका साधन योग
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