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पुराव
ऐसा पलक उसको देखकर परिवार के लोगोंके नेत्र थकित होय रहे देव दुन्दुभी बाजे बजाने लगे बैरियोंके घरमें अनेक उत्पात होने लगे माता पिताने पुत्र के जन्मका अति हर्ष किया प्रजाके सर्व भय मिटे पृथ्वीका पालक उत्पन्न भया मेजपर सूधा पड़े अपनी लीलाकर देवोंके समानहै दर्शन जिसका राजा रत्नश्रवाने बहुत दान दिया । आगे इनके बड़े ओ राजा मेघवाहन भए उनको राक्षसोंके इन्द्र भीमने हार दिवाथा जिसकी हजार नागकुमार देव रचा करें वह हार पास घराथा सो प्रथम दिवस हीके बालकने बैंच लिया बालककी मुट्ठीमें हार देस माता आश्चर्य को प्राप्त भई और महा स्नेहसे बालक को छातीसे लगाय लिया और सिर चूंबा और पिताने भी हार सहित बालकको देख मन में बिचारी कि यह कोई महा पुरुष है हजार नागकुमार जिसकी सेवा करें ऐसे हार से क्रीडा करता है यह सामान्य पुरुष नहीं इसकी शक्ति ऐसी होयगी जो सर्व मनुष्यों को उलंघे आगे चारण मुनि ने मुझे कहाथा कि तेरे पदवीधर पुत्र उत्पन्न होवेंगे सो आप प्रतिबामुदेव शलाका पुरुष प्रगट भए हैं । हारके योगसे दश बदन पिताको नजर आए तब इसका दशानन नाम धरा फिर कुछ कालमें कुम्भकर्ण भए सूर्य समान है। तेज जिसका फिर कुछ इक काल में पूर्णमाशी के चंद्रमा समान है बदन जिसका ऐसी चन्द्रनखा बहिन भई फिर विभीषण भए महा सौम्य धर्मात्मा पाप कर्म रहित मानों साक्षात् धर्मही देह धारी अवतग है । जिनके गुणोंकी कीर्ति जगत में गाइये है ऐसे दशाननकी बाल क्रीड़ा दुष्टोंको भय रूप होती भई । और दोनों भाइयोंकी क्रीड़ा सौम्य रूप होतीभई कुम्भकर्ण और विभीषण दोनोंके मध्य चन्द्रनखा चांद सूर्यके मध्य सन्ध्या समान शेमती भईरावरम बाल अवस्थाको उलंघ कर कुमार अवस्था में आया।
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