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पना अपने अपने गर्व सहित नाना प्रकार के हथियारोंकर युक्त भौंह टेढ़ी किए आए भयानक, मुख जिन पुराण १८॥ के पाठवी हस्ती का नाम ऐरावत उसपर इन्द्र चढ़े वकतर पहिरे शिरपर छत्र फिरते हुये रथनूपुर से बाहिर
निकसे विद्याधर जो देव कहावें इनके और लंका के राक्षसों के महायुद्ध प्रवरता हे श्रेणिक! ये देव और राक्षस समस्त विद्याधर मनुष्य हैं नमि विनमि के वंशके हैं ऐसा युद्ध प्रवरता जो कायर जीवों से देखा न जाय हाथियों से हाथी घोड़ों से घोड़े पयादों से पयादे लड़े सेल मुद्गर सामान्य चक्र खड्ग गोफण मूसल गदा कनक पोश इत्यादि अनेक आयुधों से युद्ध भया देवोंकी सेना ने कछुएक राक्षसोंका बल घटाया तब बानरवंशी राजा सूर्यरज रक्षरज राक्षसवंशियों के परम मित्र राक्षसों की सेना को दवा देख युद्धको उद्यमी भए सो इनके युद्धसे समस्त इन्द्रकी सेना के लोकदेव जातिके विद्याधर पीछे हटे इनका बल . राक्षसकुली विद्याधर लङ्का के लोक देवों से महा युद्ध करने लगे शास्त्रोंके समूहसे आकाश में अन्धेरा कर डारा राक्षस और बानर वंशीयोंसे देवोंका वल हरा देख इन्द्र श्राप युद्ध करणेको उद्यमी भए समस्त राक्षसवंशी और वानर बंशी मेघरूप होकर इन्द्ररूप पर्वत पर गाजते हुवे शस्त्र की वर्षा करते भए इन्द्र महा योधा कछुभी विषाद नहीं करता भया किसी का बाण आपको लगने न दीया सबके बाण काट डारे और अपने बाण से कपि और राक्षसों को दवाए तब राजा माली लङ्का के धनी अपनी सेनाको इन्द्र के बल से ब्याकुल देख इन्द्र से युद्ध करणे को प्राय उद्यमी भए कैसे हैं राजा माली क्रोध से उपजा जो तेज उससे समस्त आकाश में किया है उद्योत जिन्हों ने॥ इन्द्रक और माली के परस्पर महा युद्ध प्रवरता माली के ललाट पर इन्द्र ने बाण लगाया माली ने उस वाणकी वेदना न गिनी और इन्द्र के
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