________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पन्न पुराण ॥१९॥
_मेघपुरका राजा मेरु उसकी राणी मघा पुत्र मृगारिदमन उसने किहकंघकी पुत्री सूर्यकमला देखी सो ऐसा आसक्त भया कि रात दिवस चैन नहीं तब उसके अर्थ वाके कुटम्बके लोगोंने मूर्य | कमला याची सो राजा किहकंध ने राणी श्रीमाला से मन्त्रकर अपनी पुत्री मर्यकमला मृगारिदमनको परणाई सो परमाकर जावेथा मार्गमें कर्ण पर्वतमें वर्णकुण्डल नगर बसाया।
अलंकापुर कहिए पाताल लंका उसमें मुकेश राजा इन्द्राणी नामा राणी उसके तीन पुत्र भये माली मुमाली और माल्यवान बड़े ज्ञानी गुणही हैं आभूषण जिनके अपनी क्रीड़ाओंसे माता पिता का मन हरते भए देवों समान है क्रीडा तिनकी तीनों पुत्र बड़े भये महा बलवान सिद्ध भईहे सर्व विद्या जिनको एक दिन माता पिताने इनको कहा कि तुम क्रीड़ा करनेको किहकंधपुर की तरफ जावो तो दक्षणके समुद्रकी ओर मत जाओ तब ये नमस्कारकर माता पिताको कारण पूछत भए तब पिताने कही हे पुत्रो यह बात कहीवेकी नहीं तब पुत्रोंने बहुत हठकर पूछी तब पिताने कही कि लंकापुरी अपने कुल क्रमसे चलीग्रावे है श्री अजितनाथ स्वामी दूसरे तीर्थकरके समयसे लगाय कर अपना इस खंडमें रज है आगे अशनिवेग के और अपने युद्ध भया सो परस्पर बहुत मरे लंका अपनेसे छूटी अशनिवेगने निर्घात विद्याधर थाने राखा सो महा बलवान है और कूरहै ताने देश देशमें हलकारे राखे हैं और हमाराछिद्र हेरेहै यह पिताके दुखकी वार्ता सुनकर माली निश्वास नाखता भया और आंखों से आंसू निकसे क्रोधसे भर गया है चित्त जिसका अपनी भुजाओं का बल देखकर पितासों कहता भया कि हे तात एते दिनों तक यह बात हमसे क्यों न कही तुम ने
For Private and Personal Use Only