________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पराक
। सब को बन्दन कर सदा, गणधर मुनिवर ध्याय । केवली श्रुतिकेवली, नमूं श्राचार्य उवमाय ॥११॥
वन्, शुद्धस्वभाव को धर सिद्धन का ध्यान ! सन्तन को परणाम कर, नमि दृगबत निज ज्ञान ॥१२॥ |शिवपुर दायक सुगरु नमि, सिद्धलोक यश गाय । केवल दर्शन ज्ञान को पूजू मन वच काय ॥१३॥
यथाख्यात चारित्र और, क्षपक श्रेणि गुण ध्याय । धर्म शुक्ल निज ध्यान को, बन्दू भाव लगाय ॥१४॥ उपशम वेदक तायका, सम्यग्दर्शन सार । कर बन्दन समभाव को, पूजु पयाचार ॥ १५ ॥ भूलोत्तर गुण मुनिन के, पञ्च महाबत श्रादि । पञ्च मुमति और गुप्तिलय, ये शिव मूल अनादि ॥१६॥ अनित्य श्रादिक भावना, सेऊ चित्त लगाय । अध्यातम श्रागम नमू, शांति भाव उरलाय ॥ १७॥ अनुप्रेक्षा द्वादश महा. चितवें श्रीजिनराय । तिन स्तुति करि भाव सों, षोड़श कारण ध्याय ॥१८॥ दश लक्षणमय धर्म की, घर सरधा मन मांहि । जीवदया सत् शील तप, जिनकर पाप नसाहिं ॥१६॥ तीर्थकर भगवान के पूजू पंच कल्याण । और केवलिन को नमूं केवल अरु निर्वाण ॥ २० ॥ श्रीजिनतीरथ क्षेत्र नमि, प्रणमि उभग विधिधर्म । थुति कर चहुं विधि संघ की, तजकर मिथ्या मम ॥२१॥ बन्दूं गौत्तम स्वामि के, चरण कमल सुखदाय । बन्दू धर्म मुनीन्द्र को, जम्जूकेवाल ध्याय ॥२२॥ भद्रबाहु को कर प्रणति, भद्रभाव उरलाय । वन्दि समाधि सुतन्त्र को, ज्ञानाने गुणगाय ॥ २३ ॥ महा धवल अरु जयधवल, तथा धवल जिन अन्य । बन्दूं तन मन बचन कर, जे शिवपुर के पंय ॥२४॥ पट पाहुड नाटक त्रय, तत्वारथ सूत्रादि । तिनको बन्दूं भाव कर, हरें दोष रागादि ॥ २५ ॥ गोमठ सार अगाधि श्रुत, लब्धिसार जगसार । क्षपण सार भवतार है, योगसार रस धार ॥ २६ ॥
For Private and Personal Use Only