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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पावे इसमें संदेह नहीं इष्ट संयोग का अर्थी इष्टसंयोग लहै धनकाअस्थी धन पावे, जीत का प्रारथी जीत १०७२ पावे सी का परथी सुन्दर स्त्री पावे लाभकाअस्थी लामपावेसुखकायस्थीसुखेपा और काहूकाकाई वल्लभ विदेशया होय और उसके प्रायवे की प्राकुलताहीय सोवहसु स्वसे घरमावे जोमनविषेअभिलाषाहोय सोही सिद्धहोय सर्वन्याकिं शांत होय ग्राम के नगर के देवों के देव जलके देव प्रसन्न होय और नवग्रहों की पापा न होय,कर प्रहसोम्य होय जाय और जे पाप चितवन में नावे विलाय जाय भोर सकल अकल्याणरोम कथा कर क्षय होजाय और जितने मनोरथ हें वे सब राम कथाके प्रसादसे पाबें भोरवीतराग भाव हट होय उसकरहजारांभव के उपार्जे पापोंको प्रणी दूर करे कष्टरूप समुद्र को तिरसिद्धपद शीघ्र ही पाने यहन्धमहापवित्र हे जीवको समाधि उपजावने का कारण है नाना जन्म में जीवने पाप उपार्जेमहालेरा के कारण तिनका नाशक है और माना प्रकार के व्याख्यानतिनकर संयुक्त है जिसमें बड़े बड़े पुरुषों की कथा भव्यजीवरूप कमलों को प्रफुल्लित करणहारा है सकल लोककर नमस्कार करिने योग्य श्रीवर्षमान भगवान उन्होंने गौतमसेकहा औरगौतमने श्रेणिकसे कहा इसही भान्ति केवली श्रुतकेवलीकहते भए, रामचन्द्र का चरित्र साघुवों को समाधि की वृद्धिका कारण सर्वोत्तम महामंगलरूप सो मुनोकी परिपाटी कर प्रकटहोता भया सुन्दर हे वचन जिसमें समीचीन अर्थ को घरें प्रति अद्भुत इन्द्रगुरु नामा मुनि तिन के शिष्य | दिवाकरसेन तिनकेशिष्य लक्ष्मणसेन तिनकेशिष्य रविषेण तिन जिनाना अनुसार कहा, यह रामका पुराण सम्यग्दर्शन की सिद्धि का कारण महाकल्याण का कर्ता निर्मलज्ञानका दायक विचक्षणजीवों को निरंतस्सुनिबे योग्य है अतुलपराक्रमी अद्भुत पाचरण के धारक महासुकृतीजे दशरथके नंदन तिनकी महि For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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