________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म भव बाकी हैं सो कहो, तब सर्वदेव ने कही हे प्रतेन्द्र सुन वे दोनों विजयावती नगरी में सुनंदनामा कुटम्बी
सम्यक दृष्टि उसके रोहिणी नामा भार्या उसके गर्स में अरहदास ऋषिदासनाम पुत्र होवेगे महागुणवान् । निर्मल चित्त दोनों भाई उत्तम क्रिया के पालकश्रावक के व्रत आराध समाघि मरण कर जिनराज का
ध्यान घर स्वर्ग में देव होंयगे वहां सागरांपर्यंत सुख भोग स्वर्ग से चयकर फिर उसही नगरी में बड़ेकुल । में उपजेंगे सो मुनों को दान देकर हरिक्षेत्र जो मध्यम भोग भूमि वहां युगलीया होय दोय पल्यका
पायुभोग स्वर्ग जावेंगे फिर उसही नगरी में राजा कुमारकीर्ती राणी लक्षमी तिन के महायोधा जय का
न्त जयप्रभ नामा पुत्र होयगे फिर तपकर सातमें स्वर्ग उत्कृष्ट देव होयगे देवलोक के महा सुख भोगेंगे। । ओर तू सोलवां अच्युत स्वर्गवहां से चयकर इसभरतक्षेत्र में रत्न स्थलपुर नामा नगर वहां चौघे रत्नका । स्वामी पट खंड पृथिवी का धनी चक्रनामा चक्रवर्ती होयगा तब वे सातवेंस्वर्गसे चयकर तेरे पुत्र होंयगे।
रावण के जीव का नाम तो इन्द्ररय और वसुदेव के जीव का नाम मेघस्थ दोनों महाधर्मातमाहोयेंगे परस्पर उनमें अतिस्नेह होयगा और तेग उनसे अति स्नेह होयगा जिस रावणने नोतिसे तीन खंड पृथिवी का अखंड राज्य काया और ये प्रतिज्ञा जन्म पर्यंत निवाही जो परस्त्री मुझेन इच्छे ताहि में नसेउं सो रावण का जीव इन्द्ररथ धर्मात्मा कैयकश्रेष्ठ भव घारतीर्थंकर देव होयगा, तीनलोक उसको पजेंगे और तू, चक्रवर्तीराज्यपदतज मुनि ब्रतधारी पंचोत्तरो में वैजयंतनामा विमान वहांतप के प्रभावसेअहिमिन्द्रहोयगा वहां से चयकर रोवण का जीवतीर्थकर उसके प्रथम गणघर होय निर्वाण पद पावेगा, यह कथा श्रीभगवान राम केवली तिनके मुख प्रतीन्द्र सुनकर प्रतिहर्षित भया फिर सर्वज्ञ देवने प.ही हे प्रतेन्द तेरा चक्रवर्ती ।
3
For Private and Personal Use Only