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पद्म पुराव
१०६२
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त्रैलोक्य कर बन्दिवे योग्य संयोगकेवली तिनकी गंधकुटी देव रचते भए दिव्यध्वनि खिरती भई सव ही श्रवण करतेभए और बारम्बार स्तुति करते भए सीता का जीव स्वयंप्रभ नामा प्रतेन्द्र केवली की पूजा कर तीनप्रदक्षिणा देय बारम्बार क्षमा करायता भया, हे भगवान में दुर्बुद्धिने जो दोष किए सोक्षमा करो, गौतम स्वामी कहे हैं हे श्रेणिक वे भगवान बलदेव अनंत लक्ष्मी कांति कर संयुक्त आनन्द मर्त्ति केवली तिनकी इन्द्रादिक देव महाहर्ष के भरे अनादि रीति प्रमाण पजा स्तुति कर विहार की विनती करते भए, तब केवली ने विहार किया सो देव भी लार विहार करते भए । ॥ इति एक सौतेइसव पर्व सम्पूर्णम् ॥ अथानन्तर सीता का जीव तेंद्र लक्ष्मण के अनेक गुण चितार लक्ष्मण का जीव जहां था वहां जायकर उसको सम्यकज्ञान का ग्रहण करावता और खरदूषण का पुत्र शंबूक असुरकुमार जातिका देव भया था सो ये तीजे नरकतक नारकीयों को बाधा करावे हिंसानंद रौद्रध्यान विषे तत्परपापीनार की य को परस्पर लड़ावें, पाप के उदयकरजीव अधोगति जावे सो तीजे लगतो असुरकुमारभी लड़ाव हैं आगे
सुर कुमार नजय नारकी परस्पर ही लड़ें हैं जहां कईयकों को अग्निकुण्ड विषेडारे हैं सो पुकारे हैं कैयकों को कांटा कर युक्त जो शाल्मलीवृक्ष तिनपर चढाय घसीटे हैं कैयकों को लोहमईमुद्गर और मूसलोंकर कूटे हैं और जे मासाहारी पापी तिनको उन्ही का मांस काट काट खुवावे हैं और प्रज्वलित ताम्बे के लोहे का गोला तिनके मुखमें मार मार देवे हैं और कैयक मारके मारे भूमि में लोटे हैं और मायामई श्वान मार्जार सिंह व्याघ्र दुष्ट पक्षी भषे हैं, वहां तिर्यंच नहीं नरक की विक्रिया हैं कई यकों को सूली चढ़ावें हैं वज्र अग्नि के मुद्गरों कर मारे हैं कईयकों को कुम्भीपाक में डारे हैं कई यकों को ताता तांबा
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