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२०४६
पद्य का जीतव्य एक क्षणमात्र में नाशको प्राप्त होय है चतुर्गति संसार में भ्रमण करते मेंने अत्यंत कष्ट से पुराण मनुष्य शरीर को पाया सो वृथा खोया कौमके भाई कौनके पुत्र कौनका परिवार कौनका धन कौनकी स्त्री
इस संसार में इस जीवने अनंत संबंधि पाये एक ज्ञान दुर्लभ है इसभांति श्रीराम प्रतिबद्ध भए तब वे दोनों देव अपनी माया दूरकर लोकों को श्राश्चर्य की करणहारी स्वर्गकी विभूति प्रकट दिखावते भए शीतल. मंद सुगंध पवन वाजी और आकाश में देवों के विमान ही विमान होय गए और देवांगनागावती भई वीण वासुरी मृदंगादि वाजते भए वे दोनों देव राम से पूछते भए आप इतने दिवस राज्य कीया सो सुख पाया तब राम कहते भये, राज्य में काहे कासुख जहां अनेक व्याधि हैं जो इसे तज मुनि भयेवे सुखी और में तुमको पूछ हूं तुम महा सौम्यवदन कौन हो और कौन कारण कर मुझसे इतना हित जनाया तब जटायु का जीव कहता भया हे प्रभो में वह गृध्र पक्षी आप मुनो को अाहार दिया वहां म प्रतिबद्ध भया और आप मुझे निकट सखा पुत्र कीन्यांई पाला और लक्ष्मण सीता मुझसे अधिक कृपा करते सीता हरीगई उसदिन मैं रावण से युद्ध कर कंठगति प्राण भयाापनेप्राय मझे पंचनमोकार मन्त्र दिया सो। में तुम्हारे प्रसाद कर चौथे स्पर्धदेव भया स्वर्ग के सुखकर मोहित भया अबतक आपके निकट न आया । अब अवधिज्ञान कर तुमको लमण के शोक कर व्याकुल जान तुम्हारे निकट आया हूंऔर कृतांतवक्र के जीवने काही हे नाथ में कृतांत्वक्र आपका सेनापति था आप मुझे धात पुत्रों से अधिक जाना और
बैराग्य होते मझ श्राप प्राज्ञाकरीची ओ देव होवो तोहमको कभी चिंता उपजे तब चितारियो सो श्रापके | लब्रमण के मरण की चिन्ता जान हम तुमपे आये तब राम दोनों देवों से कटते भये तुम मेरे परममित्र
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