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१०४४॥
पन के पुत्र वज्र माली रतिवेग नामा मुनि के निकट मुनि भये, तब यह जटायु का जीव देव उन साधुओं । पराण
का दर्शन कर अपना सकल वृत्तांत कह क्षमा कराय अयोध्या आया जहां राम भाई के शोक कर चालक की सी चेष्टा कर रहे हैं तिनके संवोधवे के अर्थ वे दोनों देव चेष्टा करते भये, कृतांतवक्र का जीव तो सूके वृक्ष को सींचने लगा और जटायु का जीव मृतक बैल यगल तिनकर हलवाहवे का उद्यमी भया और शिला ऊपर बीज बोने लगा सो ये भी दृष्टांत रामके मन में न अाया फिर कृतांतवक्र का जीव गमके आगे जलको घृत के अर्थ विलोवता भया और जटायु का जीव बालू रेत को घानी में तेलके निमित्त पेलता भया सो इन दृष्टांतों कर रामको प्रतिबोध न भया और भी अनेक कार्य इसी भांति देवों ने कीये तब रामने पछी तुम बड़े मूढ़ हो सूका बृक्ष सींचा सो कहां और मवे बैलों से हल वाहना करो सो कहा
और शिला ऊपर बीज बोवना मो कहां और जलका विलोवना और बाल का पेलना इत्यादिकार्य तुम कीये सो कौन अर्थ. तब वे दोनों कहते भए तुम भाई के मृतक शरीर को वृथा लीएफिरो हो उसमें का यह वचन सुनकर लक्ष्मण को गाढा उर से लगाय पृथिवीका पति जोगम सो क्रोधकर उन से कहता भया हे कुबुद्धि हो मेरा भाई पुरुषोत्तम उसे अमंगल के शब्द क्यों कहो हो ऐमे शब्द बोलते तुमकोदोष उपजेगा इसभांति कृतांतवक्र के जीव के और के विवाद होय है उसही समय जदाय का जीव मवे मनुप्य का कलेवर लेय रामके आगे आया उसे देख राम बोले मरे को कलेवर काहं को कांधे लिये फिरो हो तब उसने कही तुम प्रवीण होय प्राण रहित लक्ष्मण के शरीर को क्यों लिये फिरो हो पगया अणमात्र भी दोष देखो ही और अपना मेरु प्रमाण दोष नहीं देखो हो, सारिखे की सारिखे से प्रीति होय है सो तुम
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