________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पम। ऐसा कहकर भाका दुग्यादि प्यायाचाह सो कहां पीयाकमा गौतनमानीओणे कसे कहे हैं वह विवेकी १. राम स्नेहकर जैसी जीवतेकी सेवा करिये तैसे मृतक भाईकी करताभया और नानाप्रकारके मनोहर गीत
बीण बांसुरी अादि नानाप्रकारके नाद करता भया सोमृतकको कहांरुचे मानों मरा हुवा लक्षमणरामका संग न तजताभया भाईको चन्दनसे चर्चा भुजावोंसे उठाय लेय उरसे लगाय सिर चूम्बे नुख चूम्बे हाथ । चूंचे और को हैं हे लक्षमण यह क्या भया तू तो ऐसा कभी न सोवता अब तो विशेष सोवने लगा अब निद्रा तनो इस भांति स्नेहरूप ग्रहका ग्रहा बलदेव नानाप्रकारकी चेष्टा कर यह वृतांत सब पृथिवी में प्रकट भया तिलक्षमण मूवालव अंकुश मुनि भये और राम मोहका मारा मूढ़ होयरहाहै तब वैरी क्षोभको प्राप्त भरे जैसे वर्ण ऋतुका समय पाय मेघ गाजे शंबूकका भाई सुंदर इसका नन्दन विरोधरूप है चित्त जिसका सो इन्द्रजीतके पुत्र बज्रमाली पै पाया और कही मेरा बाग और दादा दोनों,लक्षमणने मारेसो मेरा खुवंशियोंसे बेरहै और हमारा पाताल लंकाकाराज्य खोस लिया और विराधितको दिया और बानर बंशियों का शिरोमाणि सुप्रीव स्वामीद्रोही होयं रामसे मिला सोगम समुद्र उलंघ लंकापाये राक्षसनीप उजाडा रामको सीताका अति दुख सो लंका लेयवेका अभिलाषी भया और सिंहवाहिनी और गरुड वाहिनी दोय महा विद्या राम लक्षमणको प्राप्त भई तिनकर इन्द्रजीत कुम्भकर्ण -बन्दी में किये और लक्षण के चक्र हाथ आया उसकर रावणको हता अब कालचक्र कर लक्षमण मूवा सो बानरबंशियों
की पन टूटी बानर बंशी लक्ष्मण की भुजावों के आश्रय से उन्मत होय रहे थे अब क्या करेंगे वे | निरप व भये और रामको ग्यारह पत होय चुके बारहमां.पच लगा है सो गहला होय रहा है भाई |
For Private and Personal Use Only