________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पत्र।
चराख
लेकर श्राप बैठ जावें कभी लेकर उठ चलें एक क्षण काहू का विश्वास न करें एक क्षण न तज जैसे १९०३६ चालक के हाथ अमृत आवे और वह गाढ़ा गाढा गहे तैसे राम महाप्रिय जो लक्षमण उस को गाढ़ा
गाढ़ा गहे। और दीनों की नाई विलाप करे हाय भाई यह तुझे कहां योग्य जो मुझे तज कर तैंने । अकेले भाजिवे की वृद्धि करी में तेरा विरह एक क्षण सहारबे समर्थ नहीं यह बात तू कहा न जाने। है तूतो सब बातों में प्रवीण है अब मुझे दुःख के सागर में डार कर ऐसी चेष्टा करे है हाय भ्रातः यह क्या कर उद्यम किया जो मेरे बिना जाने मेरे बिना पूछे कूच का नगारा बजाय दिया हे वत्स हे बालक एक बार मुझे वचन रूप अमृत प्याय. ततो अति विनयवान् था विना अपराध मो से क्यों कोप किया, हे मनोहर अब तक कभी मोसे ऐसा मान न किया अब कछ और ही होय गया कहो मैं क्या किया, जो तू रूसा तू सदा ऐसा विनय करता मुझे दूर से देख उठ खड़ा होय सन्मुख प्रावता मुझे सिंहासन ऊपर बैठावता आप भूमि में बैठता अब क्या दशा भई में अपना सिर तेरे पायन में दूं तौभी नहीं बोले है तेरे चरण कमल चन्द्र कांति मणि से अधिक ज्योति को घरे जे नखों कर शोभित देव विद्याधर सेवे हैं हे देव अवशीघ ही उठो मेरे पुत्र बन को गए सो दूर न गए हैं तिनको हम तुरतही उलटे लावें और तुम बिना यह तुम्हारी राणी आर्त्तध्यान की भरी कुरची की नाई कल कलाट करे हैं। तुम्हारे गुण रूप पाश सो बंधी पृथिवी में लोटी लोटी फिरे हैं तिनके हार बिखर गए हैं और सीस फूल,
चूडामणि कटिमेखला कर्णाभरण विखरे फिरे हैं यह महा विलाप कर रुदन करे हैं अतियाकुल हैं इन || को रुदन से क्यों न निवारो अब में तुम विना क्या करूं कहां जाऊं ऐसा स्थानक नहीं जहां मुझे विश्राम !!
For Private and Personal Use Only