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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भरहस्स मोक्खो। छ पुव्वलक्खाइं वइक्कमेइ, वइक्कमित्ता समुप्पण्णकेवलणाणो वीसाणुग्गहणटुं दिवसं दिणयरुव पुव्वलक्खं विहरिऊण इअ चउरासीई पुव्वलक्खाई नियाउसेण अइक्कमिऊण सो भरहो महप्पा मोक्खं गच्छित्था । तइआ पमुइयचित्तेहिं देवेहिं समं सक्केण तस्स निव्वाणमहूसवो विहिओ। एवं पहुपुव्वभवा, वुत्ता तत्तो य कुलयरुप्पत्ती । सामिस्स जम्मणं तह, विवाह-ववहार-दसणयं ॥१॥ रज्जदिक्खा नाणं, जिणस्स तह चेव भरहभूवस्स। चक्कित्तं पहुणो तह, कमेण चक्किस्स सिवपत्ती ॥२॥ एय म्मि पढमवग्गे जं, इह घुत्तं भवियणबोहडे उद्देसगाण छक्कं, हरेउ दुरियाणि तं निच्चं ॥३॥ इअ सिरितवागच्छाहिवइ-सिरिकयंबप्पमुहाणेगतित्थोद्धारग-सासणप्पहावग-आबालबंभयारि-सूरीसरसेहरायरिय- विजयनेमिसूरीसर-पट्टालंकार-समयण्णु-संत मुत्ति-वच्छल्लवारिहि-आयरिय-विजयविण्णाणसूरीसर-पट्टधर-सिद्धंतमहोदहि पाइअभासाविसारय-विजयकत्थूर सूरिविरइए महापुरिसचरिए पढमवग्गम्मि मरीइभव-भाविसलायापुरिस-उसहसामिनिव्वाण-भरहनिव्वाण सरूवो छ8ो उद्देसो समत्तो य सिरिउसहसामि-भरहचक्कवहिपडिबद्धो पढमो वग्गो ॥१॥ मुंबापुरीइ मज्झे, सिरिगोडीपासणाहसंणिज्झे । रइयं एवं चरियं. रस--ससि-नंह-नयणवरिसम्मि ॥१॥ जिणसासणं जयइ जा, दिणयरससिणो तहा य लोगम्मि । ताव भवियाण कंठे सया वसेज्जा इमं चरियं ॥२॥ For Private And Personal
SR No.020520
Book TitlePadhamvaggo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemivigyan Kastursuri Gyanmandir
PublisherNemivigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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