________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥
ओम्
॥
नीतिसंग्रहः
यावत् स्वस्थो ह्ययं देहो यावन मृत्युश्च दूरतः। तावद् आत्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति॥
जव तक यह वदन तंदुरस्त है और जब तक मोत दूर है तब तक भपनी भलाई कर लो मरने के पास पहुचने पर क्या कर सको गे
A man should do good to his soul so long as the body is healthy and death is far. What will he do at the end
of life?
.
.
.
एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना । आल्हादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी ॥
पढेहुए और सुशील एक हि पुत्र से तमाम घरामा खुश रहताः है जैसी एक चांद से रात रोशन हो जाती है ।
The whole family is made happy by one good son only, learned and virtuous, as the night is made delightful by the moon. संतोषस् त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने । त्रिषु चैव न कर्तव्यो ऽध्ययने जपदानयोः॥ . तीन में संतोष करना चाहिये अर्थात् अपनी स्त्री भोजन और धन में आरै हाम में न करना चाहिए थात् पहने जप भौर दान में
For Private And Personal Use Only