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सेठियाग्रंथमाला
यह नीतिदीपक अन्य मन्द बुद्धिवालों को विशुद्धबोध देनेवाला और सत्यमार्ग पर लगानेवाला है। मध्यम बुद्धिवालों के ग्रहण करने योग्य रुचिकर तथा वैराग्य को दृढ़ करने वाला है। निर्मल बुद्धिवालों का चित्त निर्मल करने वाला तथा सदा सन्तोष की वृद्धि करने वाला हैं । अतएव यह अन्य निरन्तर मनुष्यों के चित्त में प्रकाशित होता रहे ॥ ६ ॥ आसल्लिम्बडिसम्प्रदायतिलकाः श्रीदेवजीस्वामिनस्तच्छिष्यो नथुजिद्गुरुवरकृतिस्तत्सेवकः कानजित् । सिन्दूरप्रकरं विना विषमतामाश्रित्य वृत्तोद्भवां, चेतोरजकनीतिदीपकशतं बोधाप्तये निर्ममे ॥१०॥
लिम्बड़ी सम्प्रदाय में तिलकायमान श्रीदेवजी स्वामी हुए । इन के शिष्य कर्तव्यपरायण गुरु श्री नत्थूजी स्वामी हुए । इनके शिश्य कानजी स्वामी ने सोमप्रभाचार्यविरचित सिन्दूरप्रकर का सहारा लेकर सरल पद्यों में यह चित्त प्रसन्न करनेवाला नीतिदीपक शतक ग्रन्थ स्व पर का ज्ञान प्राप्त करने के लिए बनाया ॥ १० ॥
॥ इति श्रीनीतिदीपकशतकं समाप्तम् ।। पुस्तक मिलने का पता - अगरचन्द भैरोंदान सेठिया मोहल्ला मरोटियों का
बीकानेर-( राजपूताना)
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