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* मोक्षतस्व *
(८३)
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सव्वजियाणमणंते,
भागे ते तेसिं दंसणं नाणं । खइए भावे परिणा,
मिए अ पुण होइ जीवत्तं ॥४६॥ "इस गाथामें भागद्वार और भावद्वार कहते हैं।"
सब सिद्धोंके जीव, संसारी जीवोंका अनन्तवाँ भाग है। उन सिद्धोंका केवलज्ञान और केवलदर्शन,क्षायिक भाव से और जीवितव्य (जीना),पारिणामिक भावसे है ॥ ४६॥
(१) भागद्वार-भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीनों कालोंमें यदि कोई ज्ञानीसे सिद्धोंके बारेमें पूछे कि कितने जीव मोक्षमें गये हैं, तो, ज्ञानी यहीं उत्तर देगा कि, "असंख्यात निगोद हैं, प्रत्येक निगोदमें अनन्त जीव हैं, उनमेंसे एक निगोदकर अनन्तवां भाग मोक्ष पा चुका," इसे भागद्वार कहते हैं। । (२) भावद्वार-सिद्धोंके दो भाव होते हैं, क्षायिक और पारिणामिक । क्षायिक के नव भेद हैं और पारियामिकके तीन । केवलज्ञान और केवलदर्शनसे अतिरिक्त सात क्षायिक भाव सिद्धको नहीं होते इसी प्रकार जीवितव्यको छोड़कर अन्य दो पारिणामिक भाव भी नहीं होते।
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