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(७४)
* नवतत्व *
इन चार कर्मोंको उत्कृष्ट स्थिति अर्थात् अधिक से अधिक स्थिति, तोस क्रोडाकोड़ी सागरोपमकी है ॥४०॥
सत्तरि कोडाकोडी,
मोहणीए वीस नाम गोएसु। तित्तीसं अयराई,
अाउट्टिइबंध उक्कोसा ॥४१॥ मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति सत्तर ७० क्रोडाकोड़ी सागसेपमकी है। नाम कर्म और गोत्र कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति बीस क्रोडाकोड़ा सागरोपमको है । आयु कर्मको उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपमकी है ॥४॥
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"आठ कर्मों की जघन्य स्थिति कहते है।" बारस मुख्त जहन्नी
वेयणीए अट्ट नाम-गोएसु । सेसाणंतमुहुत्तं,
एयं बंधट्टिईमाणं ॥४२॥ वेदनीय कर्मकी जघन्यस्थिति-अर्थात् कम से कम स्थिति, बारह मुहूर्त की है । नामकर्म और गोत्र कर्मकी
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