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*पापतत्व.. 000000000000000mom.normommu.........none हालत में जो कर डालता है, उसकी नोंद को 'स्त्यानद्धि कहते हैं, जिस कर्मसे ऐसी नोंद आवे, उस कर्मको भी 'स्त्यानद्धि' कहते हैं।
स्त्यान िकी हालतमें वजषमनाराचसंहननवाले जीवको वासुदेव का प्राधा पल होता है।
(२०) जिस कम से नीच कुलमें जन्म हो, उसे 'नीचैर्गोत्र' पापकर्म कहते हैं।
(२१) जिस कर्मसे जीव, दुःखका अनुभव करे, उसे 'असातावेदनीय' पापकर्म कहते हैं।
(२२) जिस कर्मसे मिथ्यात्वकी प्राप्ति हो उसे 'मिथ्वात्वमोहनीय' पापकर्म कहते हैं ।
मिथ्यात्वका लक्षण यह है, 'प्रदेवे देवबुद्धिर्या, गुरुधीरगुगै च या। अधौ धर्मबुद्धिश्च, मिथ्यात्वं तन्निगद्यते ॥ देवताके गुण जिसमें न हो उसे देव समझना, गुरुके गुण जिसमें न हों से गुरु मानना और अधर्मको धर्म समझना, यह मिथ्यात्व है।
(२३-३२) स्थावरदशकका वर्णन भागेकी गाथा में भावेगा।
(३३) जिस कर्मसे जीव नरकमें जाता है, उसे 'नरकगति' पापकर्म कहते हैं।
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