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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir c * अजीवतत्स obe x News आकाश द्रव्य, अन्य द्रव्यों को अवकाश देता है। इसलिये वही एक क्षेत्र कहलाता है । और अन्य द्रव्य क्षेत्री कहलाते हैं। एक जगह से दूसरी जगह जाना यह क्रिया है । जोक और पुद्गल को छोड़ अन्य द्रव्यों में क्रिया नहीं है इस लिये जीव और पुद्गल सक्रिय, और अन्य द्रव्य निष्क्रिय कहलाते हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और काल-इन चार द्रव्यों में विभावपरिणाम नहीं होता इसलिये ये नित्य और जीव तथा पुद्गल में विभावपरिणाम होता है इसलिये ये दोनों अनित्य हैं । नयवाद को लेकर जीवको अनित्य कहा है, अन्यथा, जैन-सिद्धान्त सर द्रव्यों को नित्यानित्य कहता है। जीवके शरीर-इन्द्रिय आदि के बनने में कारण, पुद्गल है; जोधके गमन में कारण, धर्मास्तिकाय है; जीवके स्थिर होने में कारण, अधर्मास्तिकाय है; जोवकी वर्तना में कारण, काल है । इस लिये ये पाँचों द्रव्य, कारण हैं; और जोक द्रव्य अकारण है, क्योंकि जीव से उन पाँचों द्रव्यों का कोई उपकार नहीं होता। ॥अजीव तत्व समाप्त ॥ For Private And Personal
SR No.020500
Book TitleNavtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1945
Total Pages107
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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