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* नवतस्य *
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इगसमये विगा, सिद्धा ते रोगसिद्धा य ॥ ५६॥
गुरुके उपदेश से ज्ञानी होकर जो मुक्त हुए वे, 'बुद्धबोधित सिद्ध' | महावीर स्वामी की तरह, एक समय में एक ही मोक्ष गया, वह ' एक सिद्ध' । ऋषभदेव भगवान् के सदृश, एक समय में अनेक मुक्त हुये, वे 'अनेकसिद्ध' ||२६||
अब संसार के जीवों में से कितने जीव मोक्ष में गये हैं, उसको बतलाते हैं।
जाइ होई पुच्छा, जिलाए मग्गंमि उत्तरं तइया ।
इक्कस्स निग्गोयस्स,
अणन्त भागां सिद्धगो ॥६०॥
अर्थ- जब जब भगवान् से यह प्रश्न किया गया कि श्रम संसार में से कितने जीव मोक्ष में गये हैं, तब यही उत्तर मिला कि एक निगोद का अनन्त भाग मोक्ष में गया है। जब कि ऐसे असंख्य निगोद है । साधारण वनस्पति कायको निगोद कहते हैं ।
*समाप्त*
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