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समरो मंत्र नवकार हम अनंत से अपरिचित हैं, अनंत से अपरिचित होने का अर्थ अपने आप से अपरिचित होना है। हमारा अस्तित्व अनंत है, किन्तु हम शरीर की सीमा में बंद हैं, इसलिए अपने आप को असीम अनुभव कर रहे हैं। हमारी हर सीमाओं के दो प्रहरी हैं - अहंकार और ममकार । अहंकार ! परमात्म समानता के सूत्र को काट देता है, ममकार ! हमारे अनंत अस्तित्व को जड़ पदार्थ एवं अपूर्ण, अबुद्ध, असहाय व्यक्तियों में हमें बांध देता है, असीम का बोध अनंत की अनुभूति द्वारा है। उसके सार्धन हैं - संयम, तप, ध्यान और मंत्र।
हमारे मन में नाना प्रकार के विकल्प उठते रहते हैं और हम उनसे प्रभावित भी होते है, हमारे जीवन का सार तंत्र प्रभावित होता है,
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