________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्यनहियोग्यंनभवत्यभद्रममंगलत्वात्हेसीनानाथत्वयोपेक्षितोहमितिकत्वासनाथइत्यपिउँ जिहेमिलज्जायुक्तोभवाम्युभयथापिक्तुमसमर्थइत्यर्थः॥३८॥इदानींगवादिपशरपिकोशंतस्व वत्संपत्तिवात्सल्येनशीग्रंसमुपयातिइत्याशयेनाह कोशंत्तमिति कोशंतंदीर्घस्वरंकुंवतंदानास्पं उचितंवक्तुमभदनहिनाथेत्वय्यनाथइतिवाक्य। जिन्हेम्युपेक्षिताहंसीता नाथत्वयांसनाथइति॥३॥कोशंतंदीनास्यपशरप्युपयातिगोर्निजंवत्सं॥ ईदृमदीयभाग्यंसर्वविदपिवेत्तिमत्कृपांनभवान् // 39 // // म्लानवदनंनिजतायंवत्संप्रतिपशरपिपशयोनिरपिगोर्गवादिसमुपयातिसमीपमुपसर्पति है राममदीयंत्वीरग्भाग्यंयत्सवचिदपिभयानमत्लपामयिकरुणांकञ्जुनवेत्तिनजानाति // 39 // 5 // 2 // // 2 // // 7 // For Private And Personal Use Only