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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फाल्गुन में नैमित्तिक कृत्य करते हो उसी तरह अन्य अधिकमास आनेपर दूसरे महीने में नैमित्तिक कृत्यों के करने का उपयोग रक्खो कि जिससे कोई विरोध न रहे । दो श्रावण हो, अथवा भाद्र हो तथा दो आश्विन हो तो भी कोई विरोध नहीं रहेगा । तीर्थकर महाराज की आज्ञा सम्यक् प्रकार से पलेगी। हितबुद्धि से लिखे हुए विषयपर समालोचना करना हो तो भले करो, किन्तु शास्त्र के मार्ग से विपरीत न चलने के लिये सावधानी रखना । समालोचना की समालोचना शास्त्रमर्यादापूर्वक करने को लेखक तैयार है । पाठक महाशयों को पक्षपातशून्य होकर निबन्ध देखने की सूचना दी जाती है । स्नेह राग के वस होकर असत्य को सत्य नहीं मानना, और गतानुगतिक नहीं बनना, तत्त्वान्वेषी बनकर जल्दी शुद्ध व्यवहार को स्वीकार करके भगवान् की आज्ञानुसार भाद्र सुदी चौथ के दिन साम्वत्सरिक वगैरह पांच कृत्यों का आराधन करके थोड़े भव में पञ्चम ज्ञान (केवलज्ञान) के भागी बनो। इस तरह का धर्मलाभ पाठकवर्ग के प्रति लेखक देता है For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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