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( ५४ ) आर्य-हां साहिब ! अब मैं इस पात को तो स्वीकार करता हूं कि मूर्ति अवश्य माननी चाहिए और यह बात भी कि निराकार ईश्वर परमात्मा की मूर्ति बन सक्ती है। आपने ऊपर की युक्तिओं से ठीक र सिद्ध करके बतला दिया है । अब प्रश्न केवल इतना ही है कि आप वेदों के मन्त्रों से (प्रमाण से ) इस बात को सिद्ध करके बतलाएं, क्योंकि वेदों पर हमें अधिक विश्वास है।
मन्त्री-लो साहिब ! आपके कथनानुसार अब मैं आप को वेद की श्रुतिओं से ही यह बात सिद्ध करके दिखलाता हूं तनक ध्यान देकर मुनिए, यजुर्वेद १६ अध्याय के ४९ मन्त्र में मूर्तिपूजा सिद्ध है यथा
(याते रुद्र शिवातनूरबारापापकाशिनी)
अर्थ-हे रुद्र ! तेरा शरीर कल्याण करने वाला है सौम्य है और पुण्यफल देने वाला है। देखो यजुर्वेद के तृतीय अध्याय के ६ मन्त्रमें ऐसा लिखा है,यथात्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ।।
तथाच निरुक्तम् । अ०.१३ पा० ४ खण्ड... त्रीणि अम्बकानि यस्य स त्र्यम्बको रुद्रस्तं ध्यम्बकं यजामहे (सुगन्धि ) सुष्ठुगन्धिम् (पुष्टि वर्द्धनम् ) पुष्टिकारकमिवोर्वारुकमिव फलं बन्धनादारांधनात मृत्योः सकाशान्मुञ्चस्व मां कम्मा दित्येषामितरेषा पराभवति ।
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