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( ३७ ) आकार में मानता है और कोई किसी आकार में मानता है। परन्तु मूर्तिपूजा से कोई छुट नहीं सक्ता। आप लोक गुरुग्रन्थसाहिब को तो उत्तम २ वस्त्रों में लपेट कर चारपाई वा चौंकी पर रखते हो और इसकी समाप्ति होने पर भोग पाते हो और इसके आगे धूपादि जला कर घण्टे बजाते हो और भी कई प्रकार के राग और शब्दादि इसके सन्मुख बोलते हो और भी कई प्रकार से इसकी पूजा करते हो, तो फिर आप मूर्तिपूजा से कैसे छूट सक्ते हैं, क्योंकि यदि मूर्ति जड़ है तो ग्रन्थ साहिब भी कोई चैतन्य वस्तु नहीं है, वह भी तो केवल पत्र और स्याही मिलकर ही बना है कि जिसके नीचे रखने वाली चारपाई को भी आप लोक मंजा साहिब के नाम से कहते हो, अब आपको तनक ध्यान देना चाहिए, कि आप जड़ की किस प्रकार पूजा करते हो । ___भ्रतृगण ! जब कि इसके साथ स्पर्श करने वाली वस्तु की पदवी इस प्रकार अधिक होजाती है तो परमात्मा की मूर्ति की पदवी सबसे अधिक क्यों न मानी जाए और इसकी पूजा क्यों न की जाए। - सिक्ख-महोदय ! वह गुरुओं की वाणी है इसलिये हम इसका सन्मान और पूजा करते हैं।
मन्त्री-भाई जी ! जैसे आप लोग गुरुओं की वाणी या गुरु साहिब का सन्मान व पूना करते हैं। इसी तरह हम भी परमात्मा की मूर्ति का सन्मान और पूजा करते हैं। और जब कि आप गुरुओं और इनकी वाणी की प्रशंसा करते हैं तो फिर आप को परमात्मा की मूर्ति की भी जो कि गुरुओं की वाणी
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